विमान दुर्घटना में बलिदान नहीं हुए थे नेताजी सुभाष चंद्र बोस!

नयी दिल्ली : नेताजी सुभाषचंद्र बोस विमान दुर्घटना में बलिदान नहीं हुए थे, बल्कि वे रूस चले गए थे, जहां उन्हें बंदी बना लिया गया था। डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन और लाल बहादुर शास्त्री रूस में नेताजी से मिले थे। यह दावा शुक्रवार को जारी हुई स्वतंत्रता सेनानी नीरा आर्य की आत्मकथा ‘मेरा जीवन संघर्ष’ में किया गया है।

पश्चिमी उत्तर प्रदेश के खेकड़ा में 05 मार्च, 1902 को जन्मी नीरा आर्य आजाद हिन्द फौज में रानी झांसी रेजिमेंट की सिपाही थीं। उन्होंने नेताजी सुभाषचंद्र बोस की जान बचाने के लिए अपने ही पति की हत्या कर डाली थी। इस साहसपूर्ण कदम को उठाने के लिए नेताजी ने इन्हें ‘नागिन’ नाम दिया था। नीरा नागिन के जीवन पर कई लोक गायकों ने भजन और कवियों ने महाकाव्य तक लिखे हैं, लेकिन नीरा आर्य ने अपनी आत्मकथा खुद लिखी थी। इसे सर्वप्रथम 1966 में दीनानाथ मल्होत्रा ने सरस्वती विहार, प्रकाशन से छापा था।

आपातकाल में यह पुस्तक प्रतिबंधित हो गई और प्रकाशक ने लेखिका को इसके अधिकार वापस कर दिए। 1996 में इस आत्मकथा को हैदराबाद के एक समाचार पत्र में स्वतंत्रता सेनानी मुनींद्र जी ने धारावाहिक प्रकाशित किया था। अब इसे ‘आजादी का अमृत महोत्सव’ के अवसर पर पुन: पुस्तक के रूप में प्रकाशित किया गया है, क्योंकि यह आत्मकथा स्वतंत्रता आंदोलन का एक जीवंत अध्याय है। यह आत्मकथा यह भी दावा करती है कि नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने न केवल अस्थायी सरकार बनाई, बल्कि देश के स्वतंत्र हुए हिस्से में रामराज जैसा शासन भी दिया।

आत्मकथा में नीरा लिखती हैं कि कर्नल चटर्जी आजाद हिन्द सरकार के पहले गवर्नर नियुक्त किए गए थे। इंफाल की युद्ध-भूमि में एक ओर ब्रिटिश सरकार की हुकूमत थी, तो दूसरी ओर आजाद हिन्द फौज की। दोनों सेनाओं के बीच अमराई का एक वृक्ष था। उस पर आजाद हिन्द फौज का एक तख्ता लटक रहा था, जिस पर लिखा था, ‘‘हमारे साथ आओ और आजादी के लिए लड़ो’’ इसके उत्तर में दूसरे सैनिकों ने उसी तख्ते पर लिखा, ‘‘तुम लोग जापान के गुलाम हो, तुम लोग रोटी के लिए मरते हो। तुम नमकहराम हो। अगर तुम इधर आ जाओ तो तुमको सब तरह का खाना मिलेगा।’’

उन्होंने लिखा कि मैंने वहीं पर एक तख्ती लटकाकर इसका उत्तर इस प्रकार दिया, ‘‘गुलामी के घी और आटे से आजादी की घास अच्छी है। हम लोग जापान के टुकड़खोर नहीं हैं। हम तो नेताजी के आदेश से लड़ते हैं। हम अपनी भारत माता की पराधीनता की बेड़ियां काटने के लिए लड़ते हैं।’’ रंगून के समीप जियाबादी स्टेट में आजाद हिन्द सरकार का हेड क्वार्टर बनाया गया। यहां पूरी भारतीय बस्ती थी। इस स्थान को प्रबंधक भाई परमानंद ने आजाद हिन्द सरकार को भेंट किया था। इस 50 मील के विस्तृत इलाके में आजाद हिन्द सरकार का पूरा अधिकार और पहरा था। यहां जापान और बर्मा की सरकार की कुछ भी नहीं चलती थी।

आजाद सरकार बनने से पहले जापानी कितने ही भारतीयों को ब्रिटिश गुप्तचर होने के संदेह में कठोर सजा दे चुके थे, बर्मी लुटेरे भी कितने ही भारतीयों को लूट चुके थे, लेकिन आजाद हिन्द की सरकार बनते ही यहां रामराज आ गया। इस क्षेत्र में चीनी बनाने की बड़ी मिल और सूत, कम्बल एवं हेशियन बनाने के कई कारखाने थे। जब बंगाल में अकाल पड़ा तो आजाद हिन्द सरकार ने ब्रिटिश सरकार को एक लाख टन चावल सहायता के रूप में भेजने का प्रस्ताव दिया था।

आत्मकथा में लिखा गया है कि जिस समय मणिपुर में युद्ध जारी था, उस समय मेजर एम. जेड क्यानी आजाद हिन्द दल की सहायता से स्वाधीन बनाए गए भारतीय इलाकों पर नेताजी के मार्गदर्शन में शासन करते थे। उस समय मारहे से कोहिमा विभाग के पालेल तक 15000 वर्ग मील भूमि पर आजाद हिन्द सरकार का शासन था। लोगों ने यहां सही अर्थों में रामराज की झलक देखी, ऐसी झलक शायद स्वतंत्र भारत में कभी संभव न हो सकेगी।

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