इतिहास के पन्नों में 29 अप्रैलः चित्रकला के ‘राजा’ का जन्म

भारत के सुविख्यात चित्रकारों में शामिल राजा रवि वर्मा का जन्म 29 अप्रैल 1848 को केरल के एक छोटे से शहर किलिमानूर में हुआ। उनकी कला यात्रा की सबसे बड़ी विशेषता हिंदू महाकाव्य और धर्मग्रन्थों पर बनाए गए उनके चित्र हैं। उनकी कलाकृतियों में हिन्दू देवी- देवताओं का प्रभावशाली इस्तेमाल दिखता है।

अष्टसिद्धि, लक्ष्मी, सरस्वती, भीष्म प्रतिज्ञा, कृष्ण को संवारती यशोदा, अर्जुन व सुभद्रा, शकुंतला, गंगावतरण, उर्वशी-पुरुरवा उनकी प्रमुख कृतियों में शामिल है। वडोदरा (गुजरात) स्थित लक्ष्मीविलास महल के संग्रहालय में उनके चित्रों का बहुत बड़ा संग्रह है।

उनके चाचा कलाकार राज राजा वर्मा ने उनकी प्रतिभा को पहचाना और कला की प्रारम्भिक शिक्षा दी। 14 वर्ष की आयु में वे उन्हें तिरुवनंतपुरम ले गये, जहाँ राजमहल में उनकी तैल चित्रण की शिक्षा हुई। बाद में चित्रकला के विभिन्न आयामों में दक्षता के लिए उन्होंने मैसूर, बड़ौदा और देश के अन्य भागों की यात्रा की। राजा रवि वर्मा की सफलता का श्रेय उनकी सुव्यवस्थित कला शिक्षा को जाता है। उन्होंने पहले पारंपरिक तंजौर कला में महारत हासिल की और फिर यूरोपीय कला का अध्ययन किया। 58 वर्ष की उम्र में 1906 में उनका निधन हो गया।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

+ 3 = 10