इतिहास के पन्नों में 03 अगस्त : …मैं जिंदगी का साथ निभाता चला गया

जिंदगी की भूलभुलैया, भटकाव और भ्रम के बावजूद संगीतकार जयदेव, अपने फन की ऐसी ऊंचाइयां गढ़ गए, जिस तक पहुंचना दूसरों के लिए आसान नहीं। शास्त्रीयता में पगे, लोक परंपरा में सजे जयदेव के संगीत जादुई दुनिया रचते हैं जिसका असर कभी कम न होगा- ‘अभी न जाओ छोड़ कर कि दिल अभी भरा नहीं।’ (फिल्मः हम दोनों)

पंजाब के लुधियाना में 3 अगस्त 1919 को जन्मे जयदेव का मूल नाम जयदेव वर्मा था। बाल अभिनेता के तौर पर फिल्मों में काम करने के लिए 15 साल की उम्र में घर से भागकर मुंबई पहुंच गए लेकिन जल्द ही मोहभंग हो गया। लुधियाना वापस आकर प्रोफेसर बरकत राय से संगीत की तालीम ली। बाद में मुंबई में कृष्णराव जावकर और जनार्दन जावकर के साथ-साथ लखनऊ में विख्यात सरोद वादक उस्ताद अली अकबर खान से भी संगीत की तालीम हासिल की।

जयदेव की जिंदगी को गौर से देखें तो कई भटकाव मिलते हैं। वे कहीं ठहरे नहीं, बस चलते रहे। बचपन में फिल्म अभिनेता बनने के लिए घर से निकले तो जल्द ही दिल उचाट हुआ और वापस आकर संगीत साधना में लग गए। कभी अल्मोड़ा जाकर उदय शंकर की नृत्य मंडली में शामिल हुए तो कभी मन की शांति के लिए ऋषिकेश में स्वामी शिवानंद के आश्रम में रहने लगे। ताउम्र शादी नहीं करने वाले जयदेव की जिंदगी, उनके संगीत की तरह निरंतर बहती निर्मल धारा की मानिंद थी।

जयदेव ने हिंदी सिनेमा जगत को कई अमर संगीत दिए। जिनमें ‘ؑआपकी याद आती रही रातभर’, ‘कभी खुद पे कभी हालात पे रोना आया’, ‘अल्ला तेरो नाम ईश्वर तेरो नाम’, ‘आजा सांवरिया तेहे गरवा लगा लूं’, ‘तुझे हो न हो मुझको तो इतना यकीं है’ जैसे गीतों के संगीत जयदेव की विशिष्टता को प्रमाणित करते हैं। 6 दिसंबर 1987 को इस महान संगीतकार का निधन हो गया।

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