2030 तक दुनिया का हर पांचवां व्यक्ति बोलेगा हिंदी : प्रो. द्विवेदी

कोलकाताः माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति तथा भारतीय जनसंचार संस्थान (आईआईएमसी) के पूर्व महानिदेशक प्रो. संजय द्विवेदी ने कहा है कि वर्ष 2030 आते आते दुनिय़ा का हर पांचवां व्यक्ति हिंदी बोलेगा। इस समय दुनिया के 200 विश्वविद्यालयों में हिंदी पढ़ाई जाती है। प्रो. द्विवेदी समर्पण ट्रस्ट द्वारा आयोजित ‘हिंदी की दशा व दिशा’ विषयक राष्ट्रीय संगोष्ठी में बतौर प्रधान अतिथि बोल रहे थे।

महानगर के ज्ञानमंच में आयोजित इस संगोष्ठी में उन्होंने कहा कि हिंदी को आगे बढ़ने के लिए किसी से संघर्ष करने की नहीं बल्कि सहकार बढ़ाने की आवश्यकता है। इसे विभिन्न भारतीय भाषाओं के साथ मिलकर चलने की जरूरत है।

कार्यक्रम की शुरुआत सरस्वती वंदना से हुई। ट्रस्ट के अध्यक्ष निरंजन अग्रवाल ने ट्रस्ट की विभिन्न गतिविधियों की जानकारी दी। उन्होंने कहा कि भारत दुनिया का एकमात्र देश है, जिसकी अपनी कोई राष्ट्रभाषा नहीं है। हिंदी के राष्ट्रभाषा होने से देश का सर्वांगीण विकास होगा। उन्होंने कहा कि ट्रस्ट ने धार्मिक व आध्यात्मिक आयोजन के अंतर्गत श्रीराम कथा, श्रीमद् भागवत, सुंदरकांड तथा पुष्प होली मिलन समारोह का आयोजित किया है। कोलकाता व इसके समीपवर्ती विश्वविद्यालयों से हिंदी भाषा व साहित्य में स्नातकोत्तर कर रहे विद्यार्थियों को ‘समर्पण ट्रस्ट हिंदी मेधा छात्रवृत्ति योजना’ के अंतर्गत छात्रों को छात्रवृत्ति प्रदान की जायेगी।

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एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी में शंकरलाल अग्रवाल, ज्योतिषाचार्य राकेश पांडेय, पंकज कुमार, सुजीत अग्रवाल, भानीराम सुरेका, रोहित मोर, आनंद ढेडिया, डा. अशोक पोद्दार, विक्की राजसिकारिया, प्रवीण कुमार, उमेश गुप्ता, पंकज अग्रवाल, पवन बंसल, अजय मिश्रा, अमन ढेडिया तथा शंकर सोमानी ने अपनी गरिमामय उपस्थिति से कार्य़क्रम का मान बढ़ाया।

बाबा साहब अंबेडकर विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो. सोमा बद्योपाध्याय ने उद्घाटन वक्तव्य में कहा कि अपने साहित्यिक मूल्यों के बदौलत हिंदी एक दिन विश्व पर राज्य करेगी। भाषा की समृद्धि केवल सरकारी दायित्व नहीं, संस्थानों एवं मनुष्य का दायित्व है। तब जाकर हिंदी रोजगार का माध्यम बन सकती है।

प्रेसीडेंसी विश्वविद्यालय के सहायक प्रोफेसर प्रो. ऋषिभूषण चौबे ने कहा कि तकनीकी युग में भाषाओं को लेकर हमारे मन में भय की जो स्थिति बनी हुई है, वो नहीं होनी चाहिए। आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस के सहयोग से अपनी भाषा और साहित्य को और भी समृद्ध, मजबूत बनाया जा सकता है। अंग्रेजी की तरह हिंदी को भी समावेशी चरित्र बनाना चाहिए। भाषा के प्रति अधिक संवेदनशील होना होगा और इसमें लचीलापन आवश्यक है।

हिंदी विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. विजय कुमार भारती ने कहा कि हिंदी के लोगों को अधिक से अधिक तार्किक, वैचारिक और बौद्धिक बनाने की आवश्यकता है। वरिष्ठ साहित्यकार व आईपीएस मृत्युंजय कुमार सिंह ने कहा कि भारत को किसी एक साहित्य के लिए जाना जाता है तो वह है रामचरितमानस। वह हिंदी की नहीं बल्कि अवधी की है। हिंदी खर पतवार की तरह उठी भाषा है, जिसे सरस्वती पत्रिका ने हिंदी को एक पूरा स्वरूप दिया है। संगोष्ठी की अध्यक्षता विश्वंभर नेवर ने की।

संगोष्ठी में हिंदी पत्रकारिता में उल्लेखनीय योगदान के लिए विभिन्न समाचार पत्रों के पत्रकारों को हिंदी पत्रकारिता सेवा सम्मान दिया गया। साथ ही गंगा के मनोरम प्राकृतिक वातावरण में 25 साल से बच्चों को निःशुल्क शिक्षा प्रदान कर रहे प्रो. जे.के. भारती को हिंदी सेवा सम्मान दिया गया।

ट्रस्ट की समिति सदस्य प्रीति ढेडिया ने पत्रकारों के प्रति आभार जताते हुए कहा कि जिस प्रकार के महत्वपूर्ण काम को पत्रकार बन्धु सरअंजाम देते हैं, उसके दृष्टिगत आप सब सर्वत्र सम्मान के पात्र हैं। लेकिन इसके साथ ही आपकी जिम्मेदारियां भी उतनी ही ज्यादा हैं। इसलिए प्रेस को बिना किसी लाग-लपेट के निर्भय होकर अपने कर्त्तव्य का पालन करना चाहिए। आरजे राकेश ने भी हिंदी की व्यापकता और सर्वग्राह्यता पर जोर दिया।

ट्रस्ट के महासचिव ने प्रदीप ढेडिया ने कहा कि आगामी दिनों में इस प्रकार के और आय़ोजन किये जायेंगे।

कार्यक्रम का संचालन महावीर प्रसाद रावत ने किया। संगोष्ठी का पूरा प्रबंधन आनंद इवेंट द्वारा किया गया।

संगोष्ठी को सफल बनाने में ट्रस्ट के सभापति श्यामलाल अग्रवाल, कोषाध्यक्ष आशीष मित्तल समेत अन्य सक्रिय रहे।

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