मणिपुर में सुरक्षा बलों के रूल्स ऑफ़ इंगेजमेंट में बदलाव जरूरी : राजीव कुमार श्रीवास्तव – रक्षा विश्लेषक

सेना के हाथ बंधे : एक दृष्टान्त
भारतीय सेना को मणिपुर में 24 जून को पूर्व इम्फाल में गिरफ्तार 12 आतंकवादिओं छोड़ देना पड़ा। कांग्लेई यावल कांना लूप (KYKL) के गिरफ़्तार आतंकिओ में मोइरांगथेम ताम्बा उर्फ़ उत्तम भी शामिल था, जिसपर 2015 में चंदेल जिले में डोगरा रेजिमेंट पर हुए आतंकवादी हमला करवाने का मास्टरमाइंड होने का गंभीर आरोप था। हमले में सेना के 20 जवान शहीद हो गए थे। सुरक्षा बल एक इंटेलिजेंस के आधार पर शनिवार, 24 जून को ऐठाम गांव की घेराबंदी कर 12 आतंकवादिओं को हथियार और युद्ध के अन्य सामग्री के साथ गिरफ्तार कर ले जाते वक़्त , महिलाओं ने सेना के कॉलम को घेर लिया और आतंकवादिओं को ले जाने नहीं दिया। यू ए वी में काफी औरतों का जमघट दिखाई देने पर सेना के कमांडरों ने गांव के महिलाओं से अपील की, पर भीड़ पर कोई असर नहीं हुआ बल्कि वे और भी आक्रामक हो गयी। ऐसी कठिन दशा में जहाँ गोली चलाने से उग्र प्रदर्शन करती महिलाओं की जान भी जा सकती थी , सेना ने नियम के विपरीत महिलाओं का सम्मान करते हुए उन 12 उग्रवदिओं को गांव प्रधान के हवाले कर दी। हथियारों को अपने पास रख लिया। सेना ,भारतीयों नागरिकों के जान की हिफाज़त को अपना सर्वोपरि कर्तव्य मानती है। यह घटना उसका एक उदहारण मात्र है। मणिपुर में सुरक्षा बालों और आसाम राइफल्स के संचालन में खासकर घाटी में बाधा डाले जाता रहा है, जिसका सीधा फायदा आतंकवादी समूहों को ही मिलता है | यह चुनौती काफी गंभीर है।

मौजूदा रूल्स ऑफ इंगेजमेंट
मछली और जल के साथ जैसा संबंध ,एक आतंकवादी और समाज में रहने वाले लोगों के बीच होता है। एक सफल आतंकविरोधी अभियान में नागरिकों की सुरक्षा और सम्मान का अहम् अस्थान होता है। सुरक्षा बलों के प्रशिक्षण में इस बात पर विशेष ध्यान दिया जाता है की आतंकवादियों से संघर्ष में किसी भी निर्दोष नागरिक की शहादत की मंजूरी किसी भी कीमत पर नहीं दी जा सकती है , आपरेशन के दौरान भले ही अपनी जान क्यों न चली जाए। अमानवीय तरीकों का इस्तेमाल जिनमे जरुरत से अधिक फायरिंग भी शामिल है, बिलकुल मना है। ऑपरेशन के दौरान फायरिंग करना, अंतिम पड़ाव होना है। आतंकवादी हमारे ही देश के पथ से भटके हुए नागरिक हैं , उन्हें सही दिशा मैं लाना सुरक्षा बलों के प्रथम कर्त्तव्य है। उन्हें जीने का अधिकार देना है। हाँ , सुरक्षा बलों द्वारा कुछ गलतियां जरूर हो सकती हैं , जिसकी सख्ती से जाँच करने के बाद ही किसी सुरक्षा कर्मी को क्लीन चिट दी जा सकती है। सुरक्षा बालों के इन कठोर और पारदर्शी नियमों के कारण कई सुरक्षा कर्मी आज जेल की सजा काट रहें हैं। सुरक्षा बल देश के नागरिको की सुरक्षा करने की अपनी प्रतिज्ञा पर अडिग हैं।

भारत में आर्म्ड फोर्सेज स्पेशल पावर एक्ट 1958 और इसके संसोधित धाराओं में भारतीय फ़ौज को आतंकविरोधी ऑप्रेशन में कुछ संरक्षण मिले हुए हैं। जिनमे बिना वारंट के सर्च और गिरफ्तारी और बिना सरकार के इजाजत से कोर्ट द्वारा सीधे कार्यवाहिओं से सरंक्षण मिलना था। भारतीय सेना के सेना प्रमुख ने अपने दस बिंदुएं वाले आदेश जारी कर इस कानून को और भी पारदर्शी बना दिया है। हरेक जूनियर अफसर इन आदेशों को एक कार्ड में लिख कर अपने साथ रखता है ,ताकि उसे अपने कर्तव्यों का ज्ञान रहे। एक चेक लिस्ट बनाई गयी,जिसमे उल्लेख किया गया है की, ऑपरेशन के पहले से ही स्थानीय पुलिस के नुमाइंदे साथ रहेंगे , गिरफ्तार किये हुए आतंकी को चौबीस घंटे के अंदर पुलिस को देने होंगे, महिलाओं की गिरफतारी सिर्फ महिला पुलिस के द्वारा दिन के समय ही होगी ,गांव प्रमुख और अन्य लोगो के हस्ताक्षर लिए जायेंगे की उनका कोई नुकसान नहीं हुआ और पुरे घटना की वीडियो रिकॉर्डिंग की जाएगी। एक तरफ सुरक्षा बलों के लिए सख्त कानून का बंधन है तो दूसरी तरफ आतंकवादियों को कानून की उपेक्षा करने की पूरी छूट।

मणिपुर में सुरक्षा बलों को एक और कठिनाईओं का सामान करना पड़ रहा है। मणिपुर के उत्तर में पहाड़ियों में नागा आतंकवादि संघटन, एन एस सी एन ( मुईवा ग्रुप ) के साथ केंद्रीय सरकार ने 03 अगस्त 2015 में नागा पीस समझौता किया और उनके तीन कैम्प जो सेनापति, तामेंगलोंग और चंदेल जिलों मैं हैं, को टेकेन नोट का दर्जा दे दिया। इन तीनो कैंपों में नागा आतंकवादी हथियार के साथ रह रहें हैं। केंद्र के साथ हुए समझौते में राज्य सरकार की कोई भूमिका नहीं है। एसे में मणिपुर के जमीं पर नागा आतंकवादियों के कैंप और उनमे रहने वाले लोगों के खिलाफ राज्य पुलिस, असम राइफल्स या फिर सेना भी कोई कारवाही करने में असहज महसूस करती है। पिछले सात सालों से उनकी बेलगाम गतविधियों के कारण स्थानीय लोगों को सुरक्षा बलों से कोई भी मदद पूर्ण रूप से नहीं मिल रही और उनका गुस्सा देखने को मिलता है।

इसी तरह दक्षिण में कुकी उग्रवादी समूह के साथ 2008 से केंद्रीय सरकार, राज्य और सुरक्षा बलों के साथ सस्पेंशन ऑफ़ ऑपरेशन का समझौता किया गया है जिसके तहत उनके 13 कैंपों में हथियार रखे गए हैं। 14 साल के बाद भी कुकी उग्रवादियों को दिए गए वायदों पर कार्यवाही होना बाकि है , नतीजन कुकी के हथियार केम्पों में बंद जरूर हैं पर वह समाज में खुले आम घूम कर असहज स्थिति पैदा कर रहें हैं। सुरक्षा बल इनके खिलाफ कार्यवाही करने में कठनाई महसूस कर रहें हैं , क्योंकि इनमे जयादातर लोगों के पास सुरक्षा परिचय पत्र भी है। सरकार द्वारा उनके पूर्ण स एवं स्थाई समाधान न देने की स्थिति में ,सुरक्षा में एक और प्रश्न चिन्ह लगता है।

मैती समूह के आतंकवादी एक अलग तरह से सरक्षण पाते हैं। 2004 में इम्फाल म्युनिसिपेलिटी इलाके से आर्म्ड फोर्सेज स्पेशल पावर एक्ट हटा लिया गया था। तत्पचात इम्फाल सिटी का माहौल मैती आतंकवादी समूह के फायदे में ही रहा है। ज्यादातर मैती आतंकवादिओं ने अपने ओवर ग्राउंड वर्कर्स की टोली इम्फाल में लगा दी ,जिनका काम तस्करी से हुए कारबार को संभालना, नए भर्तियां करना और राजनीतिक सरक्षण पाना रहा है। इम्फाल मैं सिर्फ मणिपुर पुलिस ही ऑपरेशन कर सकती है , फलस्वरूप पुलिस के अंदर एक छोटा सा भाग इन मैती आतंकवादियों का हिमायती बन गए हैं। इनका मिल जुला असर समाज और सुरक्षा बलों पर पड़ता है। 2022 और अब मार्च 2023 में इम्फाल के समीप वाले कई और पुलिस स्टेशन के इलाक़े से आर्म्ड फोर्सेज स्पेशल पावर्स एक्ट हटा लिए गए ,जिसके कारण मैती आतंकवादी गुटों को अपरोक्ष रूप से फ़ायदा हुआ।

कौन से बदलाव चाहिए
एक नागा आतंकवादी यदि मणिपुर में उनके कैंप के बहार कहीं भी बिना हथियार के दिख जाये तो क्या सुरक्षा बल या फिर मणिपुर पुलिस उसे पकड़ सकती है। या फिर ,यदि एक मणिपुर का नागरिक एक नागा आतंकवादी से आक्रांत होता है और सुरक्षा बल ,आसाम राइफल्स या पुलिस को शिकायत दर्ज करता है तो क़्या कोई त्वतरित कार्यवाही उस बिना हथियार वाले आतंकवादी के खिलाफ करि जाएगी , तो जबाब है ,नहीं। यही स्थिति कमोबेश बिना हथियार के कुकी उग्रवादी के साथ की जाएगी। मैती आतंकवदीओ को आर्मी के हाथों से छुड़ा कर ले जाने के घटना 24 जून को हो चुकी है। कुल मिला जुला कर एक विचित्र परिस्थिति बनी है जहाँ , सुरक्षा बल तो हैं पर जमीनी सतह पर उन्हें काम करने की पूरी छूट नहीं है। इन सबों के हाथ पीछे की तरफ बाँध दिए गए हैं और हम भारत के नागरिक मणिपुर से दूर बैठे इस बात से आश्चर्यचकित हैं की , इतने सालों बाद भी जमीनी सतह पर कोई बदलाव क्यों नहीं है। देश के पालिसी मेकर्स इस बात के इंतजार कर रहें हैं की एन एस सी इन आतंकी समूह प्रमुख, मुईवाह ,जो काफी उम्र के हो गए हैं की मौत जल्द से जल्द हो और उनके दुसरे दर्जे के लोगों से बातचीत कर समस्या का हल निकला जाए। तबतक वे शतुरमुर्ग की तरह अपना सर जमीं के अंदर गाड़ कर समस्या की अनदेखी करते रहें।

जरूरत है, इन बदली परिस्थितियों में, आतंकवादी समूह को जो केंद्रीय सर्कार के साथ समझौता में हैं को कैंपो के अंदर कड़ी निगरानी में रखा जाये और जो कोई भी आतंकवादी बहार दिखाई दे उस पर त्वतरित कार्यवाही के आदेश सरकार द्वारा दे दिए जाये. आने वाले तीन महीनो के लिए पुरे मणिपुर मैं आर्म्ड फोर्सेज स्पेशल पावर एक्ट लागू किये जाये। पुरे राज्य में कानून का सख्ती से पालन करने का आदेश लागू किया जाये , ताकि 24 जून जैसी घटना की फिर से दोहराई न जा सके।

(लेखक पश्चिम बंगाल भाषायी अल्प संख्यक एसोसिएशन के महासचिव हैं)

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