गजल में सीधी बात नहीं कही जाती, इशारे में बातें बयां होती है :  शकील जमाली

पड़ोसी से पड़ोसी है बे-ख़बर/ मगर सब के हाथों में अख़बार है।।                                                                                  ऊर्दू ग़ज़ल, शायरी से जुड़ी स्थिति को बयां करते उम्दा शायर शकील जमाली ने प्रभा खेतान फाउंडेशन के द्वारा चलाए जाने वाले प्रकल्प ‘लब्ज़’ के अन्तर्गत आयोजित कार्यक्रम में शिरकत की।

हाल ही में यह आयोजन श्री सीमेंट लिमिटेड द्वारा उनकी सीएसआर के तहत तथा अहसास वीमेन ऑफ कोलकाता के तत्वावधान किया गया।

इस खास मौके पर शायर शकील ने ग़ज़लों व साहित्य जगत की खास बातें साझा की। उन्होंने कहा कि आज लोग पढ़ कम रहे हैं और लिख अधिक रहे हैं। हमें कोशिश करनी चाहिए कि हमें पढ़े, समझे, लिखने की हड़बड़ न करें। उन्होंने यह भी कहा कि ग़ज़लों के लिखने के अंदाज में बदलाव आया है। उसकी शब्दावली, उसके तरीके में खासा बदलाव आया है।

वादे पे न आओगे तो तफ्तीश तो होगी/ कानून को तोड़ोगे तो चालान तो होगा
हम तो उसे इक ढग का तोहफा भी न दे पाये / वो ताज महल देख के हैरान तो होगा।

उन्होंने कहा कि ग़ज़ल सीधे-सीधे अपनी बात नहीं करती बल्कि अपनी बातों को इशारे से बयां करती है और वही उसकी खासियत है। उन्होंने पुरस्कारों पर कहा कि वे पुरस्कारों को बहुत अधिक तव्वजों नहीं देते। सही हकदार को कम ही पुरस्कार मिल पाता है। पुरस्कार के लिए लॉबी अधिक सक्रिय रहती है। शकील जी ने कहा कि ग़ज़ल, शायरी बहुत अधिक लिखी जा रही है। अगर गौर से देखा जाए तो कुछ उम्दा शायरों को छोड़ दिया जाए तो बाकी के बहुत ही निम्नतर स्तर का लिखा रहे है जिसका खामियाजा अच्छे शायरों की जमात को भी भोगना पड़ रहा है। ग़ज़लों को उठाकर देखा जाए तो पाएंगे कि एक ही प्रकार के भावों पर बस थोड़ा हेरफेर कर लिख दिया जा रहा है। मौलिकता की कमी दिखती है। शायरी को गम्भीरता से नहीं लिया जाता।

एक प्रश्न पर शकील ने कहा कि शायर का काम है मोहब्बत का पैगाम देना जिसकी आज बहुत जरूरत है। उन्होने रक्ता के बारे में कहा कि संजीव सराफ बहुत अच्छा काम कर रहे है। उनकी वजह से नई पीढ़ी भाषा सीख रही है और साहित्य के प्रति उनकी रुचि भी बढ़ी है।

उन्होंने कहा कि मुझे शायद शायर ही होना था। शायर अपनी बातों को, भावों को अगर कागज पर न उतार सकें तो शायद उसकी मौत हो जाए। हिन्दी-उर्दू दोनों ही भाषा एक-दूसरे के पूरक है। इसके बिना कवि, शायर का गुजारा नहीं है। मौके पर शायर ने अपनी कई ग़ज़ल सुनाई साथ ही दर्शकों के प्रश्नों के उत्तर भी दिए।

कार्यक्रम में शायर शकील जमाली के साथ संवाद कर रहे थे प्रोफेसर शाहनवाज शिबली जो कि खुद एक शायर है। उन्होंने शायर शकील जमाली का शायराना परिचय करवाया। शकील जमाली एक मशहूर ग़ज़ल लेखक और शायर जो चांदपुर के है। उन्हें पीएचडी बीच में छोड़नी पड़ी (क्योंकि उनकी अम्मी का देहान्त हो गया था।) यह अच्छा ही हुआ क्योंकि ऐसा नहीं होता तो हम एक बेहतरीन शायर को पाने से वंचित रह जाते। उनकी किताब धूप तेज़ है, कटोरे में चाँद, मौज में है बंजारा, कागज पर आसमान प्रकाशित हो चुकी है जल्दी ही मौलसिरी के फूल ग़ज़ल संग्रह प्रकाशित होने वाला है। उन्हें उर्दू अकादमी दिल्ली की ओर से उनकी शायरी के लिए पुरस्कृत भी किया जा चुका है।

शाहनवाज ने कहा उर्दू, अरबी, फारसी, हिन्दी के लब्ज जहां मिलते है उसे प्रभा खेतान फाउंडेशन कहते है। जहां पर हमारी विरासत को संजोए रखने का कार्य हो रहा है।

ताज बंगाल के जीएम अर्नब चटर्जी ने सभी का स्वागत करते हुए कहा कि यह उर्दू, अरबी और फ़ारसी साहित्य के जश्न मनाने की एक बेहतरीन पहल है। शब्दों के शक्ति की कोई सीमा नहीं होती, और इस यह कार्यक्रम ताज बंगाल की दीवारों के भीतर, हम सिर्फ भाषाओं का जश्न नहीं मना रहे हैं; हम उन बारीकियों के प्रति गहरी समझ और प्रशंसा को बढ़ावा दे रहे हैं जो हमारी सांस्कृतिक को जीवंत और अद्वितीय बनाती हैं। इस कार्यकर्म में रेख्ता फाउंडेशन का भी सहयोग रहा है। जो उर्दू शायरी के लिए दुनिया की सबसे बड़ी वेबसाइट चलाता है।

अहसास वीमेन ऑफ कोलकाता की एशा दत्ता ने धन्यवाद ज्ञापित किया। अहसास वीमेन ऑफ नागपुर की प्रिंयका कोठारी ने उपस्थित अतिथियों को उतरीय पहना कर सम्मानित किया।

कार्यक्रम को सफल बनाने में प्रभा खेतान फाउंडेशन की कार्यकारी ट्रस्टी अनिंदिता चटर्जी व मानद मुख्य परिचालन अधिकारी मनीषा जैन ने विशेष भूमिका निभाई। कार्यक्रम में उर्दू के साहित्यकार व विशिष्टजनों ने कार्यक्रम का पूरा लुत्फ उठाया।

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