इतिहास के पन्नों मेंः 15 मार्च – देश में निकला होगा चांद

वाद और परस्ती से मुक्त लेखन आमतौर पर संभव नहीं लेकिन डॉ. राही मासूम रज़ा उन चंद नामों में हैं, जिन्होंने इस भरोसे को जी कर दिखाया। विश्वास न हो तो मुस्लिम समाज के अंतर्मन की परतों से दुनिया को परिचित कराने वाला उनका कालजयी उपन्यास ‘आधा गांव’ पढ़ें और इसी के बरअक्स हिंदू संस्कृति में पगे ‘महाभारत’ पर आधारित टीवी सीरियल का कोई भी संवाद सुन लें। भला कौन यकीन करेगा कि एक ही कलम से दोनों निकले हैं।

खुद को गंगा-जमुनी तहजीब का बेटा कहने वाले डॉ. राही मासूम रज़ा कहते थे, ‘मैं तीन मांओं का बेटा हूं। नफ़ीसा बेग़म, अलीगढ़ विश्वविद्यालय और गंगा। नफ़ीसा मर चुकी हैं, अब साफ़ याद नहीं आतीं। बाकी दोनों मांएं ज़िंदा हैं और याद भी हैं।’

डॉ. रज़ा का जन्म 01 अगस्त 1927 को उत्तर प्रदेश के गाजीपुर के गंगोली गांव में हुआ था। वैसे तो उनका ताल्लुक जमींदार खानदान से था लेकिन बचपन से ही मानवतावादी मिजाज पाया। आगे चलकर वामपंथ की तरफ गहरा झुकाव रहा। उनकी वैचारिक दृढ़ता की कई मिसालें होंगी लेकिन जब उनका लेखन देखते हैं तो उसे किसी खांचे, किसी चाहरदीवारी में नहीं बांधा जा सकता है।

देश के बंटवारे के उथल-पुथल भरे दौर में उत्तर प्रदेश के उस इलाके से डॉ. रज़ा का संबंध था, जहां इसका गहरा असर था। ‘आधा गांव’ इसी कशमकश भरे दौर से उपजी एक महान कृति है। डॉ. रज़ा का खुद मानना था कि पाकिस्तान का निर्माण मिथ्या चेतना के आधार पर हुआ है और जिस भवन की बुनियाद टेढ़ी होगी, वह ज्यादा दिन तक नहीं चलेगा।

डॉ. राही ने साहित्य को अपने हिस्से का भरपूर योगदान दिया। ‘आधा गांव’ के अलावा ‘टोपी शुक्ला’, ‘हिम्मत जौनपुरी’, ‘दिल एक सादा कागज’, ‘कटरा बी आर्जू’, ‘नीम का पेड़’ जैसे कई मशहूर उपन्यास हैं। उन्होंने संवाद और पटकथा लेखन के साथ-साथ शायरी में भी हाथ आजमाया- ‘हम तो हैं परदेस में, देस में निकला होगा चांद/ अपनी रात की छत पर, कितना तन्हा होगा चांद।’

पद्मभूषण और पद्मश्री से सम्मानित रज़ा साहब ने 15 मार्च 1992 को दुनिया को अलविदा कह दिया- ‘ मेरा फन तो मर गया यारों, मैं नीला पड़ गया यारों, मुझे ले जाकर गाजीपुर की गंगा में सुला देना, मगर शायद वतन से दूर मौत आए, तो मेरी यह वसीयत है, अगर उस शहर में इक छोटी-सी नदी भी बहती हो, तो मुझको उसकी गोद में सुला कर उससे कह देना, कि गंगा का यह बेटा आज से तेरे हवाले है।’

अन्य अहम घटनाएं:

1901ः कुश्ती के उस्ताद रहे गुरु हनुमान का जन्म।

1934ः भारतीय राजनीतिज्ञ और बसपा के संस्थापक कांशीराम का जन्म।

1943ः वरिष्ठ भाजपा नेता व दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री साहिब सिंह वर्मा का जन्म।

1947ः भारतीय राजनीतिज्ञ एम. थंबीदुरई का जन्म।

2015ः प्रख्यात गांधीवादी नारायण भाई देसाई का निधन।

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