सार्थक हो महिला हितों की बात

                                               ◆ रमेश सर्राफ धमोरा महिलाएँ आज हर क्षेत्र में पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम कर अपनी ताकत का अहसास करवा रही हैं। पिछले कुछ वर्षों में भारतीय महिलाओं से जुड़ी कुछ अच्छी खबरें सुनने को मिली हैं। वर्ष 2019 के चुनाव में लोकसभा में महिला सांसदों की संख्या बढ़कर 78 हो गयी। जो अब तक की सबसे ज्यादा 14.36 प्रतिशत भागीदारी है। सेना में महिलाओं को स्थाई कमीशन मिलने से अब सेना में महिलायें भी पुरुषों के समान पदों पर काम कर पायेगी। इससे महिलाओं का मनोबल बढ़ेगा। उनके आगे बढ़ने का मार्ग प्रशस्त होगा। महिलाओं के प्रति सम्मान प्रकट करने के लिए हर वर्ष 8 मार्च को विश्व भर में अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जाता है। संयुक्त राष्ट्र संघ ने भी महिलाओं के अधिकार को बढ़ावा और सुरक्षा देने के लिए दुनियाभर में कुछ मापदंड निर्धारित किए हैं।

स्वतंत्रता प्राप्ति के 75 वर्ष बाद भी भारत की 70 प्रतिशत महिलाएं अकुशल कार्यों में लगी हैं। जिस कारण उनको काम के बदले कम मजदूरी मिलती है। पुरुषों की तुलना में महिलाएं औसतन हर दिन छह घण्टे ज्यादा काम करती हैं। चूल्हा-चौका, खाना बनाना, सफाई करना, बच्चों का पालन-पोषण करना तो महिलाओं के कुछ ऐसे कार्य हैं जिनकी कहीं गणना ही नहीं होती है। दुनिया में काम के घण्टों में 60 प्रतिशत से भी अधिक का योगदान महिलाएं करती हैं। जबकि उनका सम्पति पर मात्र एक प्रतिशत ही मालिकाना हक है।

कहने को तो सम्पूर्ण विश्व की महिलाएं एकजुट होकर महिला दिवस को मनाती हैं। मगर हकीकत में यह सब बातें सरकारी दावों व कागजों तक ही सिमट कर रह जाती हैं। देश की अधिकांश महिलाओं को तो आज भी इस बात का पता नहीं है कि महिला दिवस का मतलब क्या होता है? महिला दिवस कब आता है कब चला जाता है? भारत में अधिकतर महिलायें अपने घर-परिवार में इतनी उलझी होती है कि उन्हें बाहरी दुनिया से मतलब ही नहीं होता है। लेकिन इस स्थिति को बदलने का बीड़ा महिलाओं को स्वयं उठाना होगा। जब तक महिलायें स्वयं अपने सामाजिक स्तर व आर्थिक स्थिति में सुधार नहीं करेगी तब तक उन्हें उनका हक मिलेगा, इसमें गहरा संदेह है।

आज 21वीं सदी में भी महिला घरेलू हिंसा से मुक्त नहीं हो पाई हैं। आज मानव आधुनिक व वैज्ञानिक होने का दावा अवश्य कर रहा है लेकिन लिंग भेद की मानसिकता से अब तक उबर नहीं पाया है। भारतीय समाज में सदियों से स्त्रियों को सत्ता, सम्पत्ति और प्रतिष्ठा से वंचित रखा गया। भारतीय संविधान में नारी समाज को सामाजिक न्याय के दायरे में रखा गया। फिर भी भारतीय महिलाओं को संविधान के अनुरूप न्याय नहीं मिल पा रहा है।

दुःख की बात यह है कि नारी सशक्तिकरण की बातें और योजनाएं केवल शहरों तक ही सिमटकर रह गई हैं। एक ओर शहरों में रहने वाली महिलाएं शिक्षित, आर्थिक रुप से स्वतंत्र हैं जो पुरुषों के अत्याचारों का मुकाबला करने में सक्षम है। वहीं दूसरी तरफ गांवों में रहने वाली महिलाओं को तो अपने अधिकारों का भी पूरा ज्ञान नहीं हैं। वे चुपचाप अत्याचार सहती रहती हैं और सामाजिक बंधनों में इस कदर जकड़ी हैं कि वहां से निकल नहीं सकती हैं।

भारत में ऐसी केवल 24 प्रतिशत महिलाएं हैं जिनके हाथ में सीधे तौर पर नगद मजदूरी आती है। ज्यादातर मामलों में महिला के पति या पिता ही मजदूरी ले लेते हैं। असंगठित क्षेत्र में मजदूरी करने वाली महिलाओं को तो पुरूषों के बराबर काम करने पर भी पुरूषों से कम मजदूरी देकर उनके साथ भेदभाव किया जाता है। मगर मजबूरीवश वे विरोध नहीं कर पाती हैं। महिलाओं के लिए नियम-कायदे और कानून तो खूब बना दिये हैं किन्तु उन पर हिंसा और अत्याचार की घटनाओं में अभी तक कोई कमी नहीं आई है।

भारत में 70 फीसदी महिलाएं किसी न किसी रूप में कभी न कभी हिंसा का शिकार होती हैं। महिलाओं से बलात्कार, हिंसा की घटनाओं में तेजी से बढ़ोतरी हो रही है। देश को आजाद हुए कई दशक बीत जाने के उपरान्त भी महिलायें अभी तक स्वयं को असुरक्षित महसूस करती हैं। महिलायें आज भी अपनी मान मर्यादा की रक्षा को लेकर संघर्षरत नजर आती हैं।
सरकार ने महिलाओं के लिए नियम-कायदे और कानून तो बहुत सारे बना रखे हैं। किन्तु उन पर हिंसा और अत्याचार के आंकड़ों में अभी तक कोई कमी नहीं आई है। संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के अनुसार भारत में 15 से 49 वर्ष की उम्र वाली 70 फीसदी महिलाएं किसी न किसी रूप में कभी न कभी हिंसा का शिकार होती हैं। इनमें कामकाजी व घरेलू महिलायें भी शामिल हैं। देशभर में महिलाओं पर होने वाले अत्याचार के लगभग डेढ़ लाख मामले सालाना दर्ज किए जाते हैं। जबकि इसके कई गुणा अधिक मामले दबकर रह जाते हैं।

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार पिछले कुछ वर्षों में महिलाओं के खिलाफ अपराध के मामले दोगुने से भी अधिक हुए हैं। पिछले दशक के आंकड़ों के मुताबिक भारत में हर घंटे महिलाओं के खिलाफ अपराध के 26 मामले दर्ज होते है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार महिलाओं के प्रति की जाने वाली क्रूरता में वृद्धि हुई है।
ऐसी स्थिति में जबतक देश के सभी क्षेत्रों में महिलाओं को समान अवसर नहीं मिलेगा तब तक देश में महिला शक्ति का समुचित उपयोग नहीं हो पायेगा। अब महिलाओं को समझना होगा कि आज समाज में उनकी दयनीय स्थिति समाज में चली आ रही परम्पराओं का परिणाम है। इन परम्पराओं को बदलने का बीड़ा स्वयं महिलाओं को ही उठाना होगा। जब तक महिलाओं का सामाजिक, राजनीतिक, शैक्षिक, वैचारिक एवं पारिवारिक तौर पर उत्थान नहीं होगा तब तक महिला सशक्तिकरण की बातें करना व महिला दिवस मनाने की कोई सार्थकता नहीं होगी।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *