इतिहास के पन्नों में 25 जनवरीः हर सम्मान से बड़ा विनोबा भावे का कद

देश-दुनिया के इतिहास में 25 जनवरी की तारीख तमाम अहम कारणों से दर्ज है। देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न और भूदान यज्ञ आंदोलन के संस्थापक आचार्य विनोबा भावे से इस तारीख का अटूट रिश्ता है। दरअसल 1983 में इसी तारीख को उन्हें मरणोपरांत भारत रत्न से भी सम्मानित किया गया था। हालांकि वो हर सम्मान से परे हैं। इस पुरोधा का कद हर सम्मान से बड़ा है। विनोबा भावे की गिनती देश के महान स्वतंत्रता सेनानियों और समाजसेवकों में होती है। वह महात्मा गांधी के अनुयायी थे। 11 सितंबर, 1895 को जन्मे विनोबा भावे पूरी जिंदगी गांधी की तरह सत्य और अहिंसा की राह पर चलते हुए गरीब और बेसहारा लोगों के लिए लड़ते रहे। आचार्य ने महात्मा गांधी की अगुवाई में 1920 में शुरू हुए असहयोग आंदोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। उन्होंने देशवासियों से विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार कर स्वदेशी वस्तुओं का उपयोग करने की अपील की। गांधी ने भावे को 1921 में अपने वर्धा आश्रम को संभालने की जिम्मेदारी दी। यहीं से उन्होंने ‘महाराष्ट्र धर्म’ नाम से एक मासिक पत्रिका निकाली। इस पत्रिका के जरिए वह लोगों तक वेद और उपनिषद के संदेश पहुंचाते थे।

आजादी की लड़ाई में भावे के बढ़ते कद को देख ब्रितानी हुकूमत परेशान हो गई और शासन का विरोध करने के आरोप में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। उन्हें छह महीने की सजा हुई। विनोबा भावे कई बार जेल गए। जेल में वह कैदियों को गीता का पाठ पढ़ाया करते थे। महात्मा गांधी ने 1940 में उन्हें अंग्रेजों के खिलाफ आवाज उठाने वाला पहला व्यक्तिगत सत्याग्रही घोषित किया। विनोबा भावे बेहद शांत और अनुशासित शख्स थे। महात्मा गांधी की हत्या के बाद उन्होंने उनके सर्वोदय शब्द को अपनाया, जिसका अर्थ है-सभी के लिए प्रगति।

आजादी के कुछ साल बाद तेलंगाना (तब आंध्र प्रदेश) में वामपंथियों की अगुवाई में भूमिहीनों ने आंदोलन शुरू किया। बाद में यह आंदोलन हिंसक हो गया। विनोबा भावे 18 अप्रैल, 1951 को इन किसानों से मिलने नलगोंडा के पोचमपल्ली गांव पहुंचे। किसानों ने उनसे अपनी आजीविका के लिए 80 एकड़ जमीन की मांग की। विनोबा भावे ने इसके बाद कुछ जमींदारों से बात की। उनकी बातों का जमींदार रामचंद्र रेड्डी पर इतना असर हुआ कि उन्होंने अपनी 100 एकड़ जमीन दान दे दी। इससे विनोबा भावे काफी प्रभावित हुए और उन्हें इस घटना को आंदोलन का रूप देने का विचार आया। भावे की अगुवाई में भूदान यज्ञ आंदोलन 13 वर्ष तक चला। उन्होंने देश के हर कोने का दौरा किया। इस दौरान करीब 13 लाख गरीब किसानों के लिए 44 लाख एकड़ जमीन हासिल की। इस आंदोलन की स्वैच्छिक सामाजिक न्याय के लिहाज से पूरी दुनिया में खूब प्रशंसा हुई। उत्तर प्रदेश और बिहार में सरकारों ने भूदान एक्ट पास किया, जिससे जमीन का बंटवारा व्यवस्थित तरीके से हो सके।

महात्मा गांधी की शिक्षा के तर्ज पर उन्होंने 1959 में महिलाओं को मजबूती देने के लिए ‘ब्रह्म विद्या मंदिर’ की शुरुआत की। वह गोहत्या और हरिजनों के मैला ढोने के भी सख्त खिलाफ थे। आचार्य विनोबा भावे ने लंबी बीमारी के बाद 15 नवंबर, 1982 को वर्धा में इस दुनिया को अलविदा कह दिया। वह वास्तव में एक ऐसे शख्स थे, जिनमें लोग गांधी को देखते थे। वह 1958 रेमन मैग्सेसे पुरस्कार पाने वाले पहले भारतीय थे।

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