इतिहास के पन्नों में 12 जुलाईः प्लास्टिक के खिलाफ पहल, प्रचलन में आए पेपर बैग

इतिहास में 12 जुलाई की तारीख कई महत्वपूर्ण घटनाओं की गवाह है। 1823 में 12 जुलाई को ही भारत में निर्मित प्रथम वाष्प इंजन युक्त जहाज ‘डायना’ का कलकत्ता (अब कोलकाता) में जलावतरण हुआ था। 1970 में अलकनंदा नदी में आई भीषण बाढ़ ने 600 लोगों की जान ले ली थी। इसके अलावा सबसे महत्वपूर्ण यह है कि सारी दुनिया में 12 जुलाई को पेपर बैग डे मनाया जाता है। इसे मनाने का उद्देश्य प्लास्टिक कचरे को कम करने में मदद करने के लिएपेपर बैग का उपयोग करने के बारे में जागरूकता फैलाना है। पेपर बैग हानिकारक प्लास्टिक की थैलियों के लिए पर्यावरण के अनुकूल ठोस विकल्प है।

प्लास्टिक को विघटित होने में हजारों साल लगते हैं और यह जीव-जंतुओं के लिए भी हानिकारक है। दुनियाभर में समुद्र में प्लास्टिक का कचरा जमा हो रहा है,। इससे मछलियों की मौत हो रही है। इसे लेकर कई बार वैज्ञानिक चेतावनी दे चुके हैं कि 2050 तक समुद्र में मछलियों के बराबर ही प्लास्टिक कचरा होगा। अमेरिकी आविष्कारक फ्रांसिस वोले को 1852 में पहली पेपर बैग मशीन का पेटेंट कराने का श्रेय दिया जाता है। मदर ऑफ द ग्रॉसरी बैग के नाम से मशहूर मार्गरेट ई नाइट ने 1870 में चौकोर और फ्लैट बॉटम बैग बनाए। यही नहीं उन्होंने वह मशीन भी बनाई जो प्लास्टिक को मोड़ देता और उन्हें चिपकाकर बैग बना देता था। इसके बाद दुनियाभर में प्लास्टिक बैन करने की मांग को लेकर प्रदर्शन हुए और लोगों ने भी इस बात को समझा।

इसके बाद लाखों लोगों ने प्लास्टिक की बजाय कागज के थैलों को इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है। इन थैलों को इस्तेमाल होने के साथ-साथ री-साइकिल भी किया जा सकता है। यह बायोडिग्रेडेबल होते हैं और संभालना भी आसान होता है। महत्वपूर्ण यह है कि पेपर बैग 100 फीसदी री-साइकिल किए जा सकते हैं। सिर्फ एक महीने के भीतर विघटित हो सकते हैं। प्लास्टिक बैग की तुलना में पेपर बैग बनाने में कम ऊर्जा खर्च होती है। पेपर बैग पालतू जानवरों और अन्य पशुओं के लिए भी सुरक्षित होते हैं। पेपर बैग का प्रयोग खाद बनाने के लिए भी किया जा सकता है।

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