प्रधानमंत्री की सुरक्षा में चूक या साजिश

                                          सियाराम पांडेय ‘शांत’   पंजाब में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सुरक्षा में चूक का मामला गर्म है। यह कहा जाए कि यह राजनीतिक रूप ले रहा है तो भी कदाचित गलत नहीं होगा। पंजाब में हुई इस घटना के बाद कांग्रेस की चरणजीत सिंह चन्नी सरकार सवालों के कठघरे में खड़ी है। देशभर में उसकी आलोचना हो रही है। मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी का तर्क है कि प्रधानमंत्री की सुरक्षा में कोई चूक नहीं हुई है। अगर यह जरा भी सच है तो फरीदकोट और फिरोजपुर के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक को किसलिए निलंबित किया गया? क्या उन्हें बेमतलब सजा दे दी गई। यह चूक आखिर किसकी है? यह तो सुस्पष्ट होना ही चाहिए।

मौसम पर किसी का भी वश नहीं। वह कहीं भी, कभी भी खराब हो सकता है। अतिविशिष्ट लोगों के सड़क मार्ग से दौरे हमेशा चुनौतीपूर्ण होते हैं फिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से तो पाकिस्तान और चीन की बड़ी अदावत है, ऐसे में उनकी सुरक्षा को लेकर तो वैसे भी रिस्क नहीं लिया जा सकता। यह सब जानते हुए भी प्रधानमंत्री के मार्ग का सार्वजनिक हो जाना कांग्रेस सरकार की लापरवाही और साजिश नहीं तो और क्या है? रूट लीक होने की पुष्टि करता एक वीडियो भी वायरल हो रहा है जिसमें लाउडस्पीकर से भीड़ एकत्र करने और 20 ट्रैक्टर ट्रॉली खड़ा कर मार्ग अवरुद्ध करने की बात कही जा रही है।

हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि यह देश आतंकी हमलों में अपने दो प्रधानमंत्री खो चुका है और तीसरे प्रधानमंत्री को खोने का उसमें तनिक भी धैर्य नहीं है। जिस फ्लाईओवर के पास प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का काफिला 20 मिनट तक फंसा रहा, उस जगह पहले भी विस्फोटक घटना हो चुकी है। कांग्रेस को यह नहीं भूलना चाहिए कि इंदिरा गांधी की हत्या जब उनके दो सिख अंगरक्षकों ने की थी तो देश भर में सिखों के कत्लेआम शुरू हो गए थे। उनकी संपत्तियों को या तो लूट लिया गया था या फिर उन्हें आग के हवाले कर दिया गया था। वह तो अच्छा हुआ कि प्रधानमंत्री ने अपना कार्यक्रम रद्द कर दिया। अगर उनके साथ कोई आतंकी घटना हो जाती तो देश में अशांति फैल जाती तो कांग्रेस क्या ऐसा कुछ करना चाहती थी।

सुनील जाखड़ ने अपने ही दल कांग्रेस की मुखालफत करते हुए कहा है कि पंजाब में मोदी को सुरक्षा न देना लोकतंत्र और पंजाबियत के अनुकूल नहीं है। कैप्टन अमरिंदर सिंह, सुखदेव ढींढसा और शिरोमणि अकाली दल ने भी प्रधानमंत्री को पंजाब में माकूल सुरक्षा न देने की आलोचना की है और वहां राष्ट्रपति शासन लगाए जाने की मांग की है। जब एसपीजी ने मुख्य सचिव और गृह सचिव से रूट तय कर लिया था, तभी तो प्रधानमंत्री का काफिला उस मार्ग से रवाना हुआ था। अगर उस मार्ग पर पहले से ही किसान बैठे थे, आंदोलन कर रहे थे तो क्या प्रधानमंत्री को संकट में डालने की यह कांग्रेस की चाल थी।

जिस तरह पुलिस ने तथाकथित प्रदर्शनकारी किसानों से झड़प के बाद भाजपाइयों पर लाठियां भांजी, उसका मंतव्य साफ है कि वहां जो कुछ भी हुआ, कांग्रेस सरकार की शह पर हुआ। कांग्रेस नहीं चाहती थी की प्रधानमंत्री पंजाब को 42 हर करोड़ से अधिक लागत वाली परियोजनाओं का तोहफा दें। इसलिए उसने जान-बूझकर इस तरह की साजिश की। भाजपा शासित राज्यों में अगर इसी तरह का व्यवहार सोनिया, राहुल और प्रियंका के साथ होगा, तो क्या होगा? हालांकि भाजपा इस तरह का आचरण नहीं करती। एक तरफ तो कांग्रेस लोकतंत्र की बात करती है और दूसरी ओर लोकतंत्र को कमजोर करने की हरसंभव कोशिश करती है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इतना सबके बाद भी सदाशयता पूर्ण व्यवहार ही किया। भटिंडा एयरपोर्ट पर उन्होंने अधिकारियों से कहा कि अपने मुख्यमंत्री को धन्यवाद कहना कि मैं भटिंडा एयरपोर्ट जिंदा लौट पाया। अब तक के भारतीय इतिहास में किसी भी प्रधानमंत्री ने शायद ऐसी बात नहीं कही है। पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की तमिलनाडु में हुई हत्या भी सुरक्षा चूक का ही परिणाम थी। इसके बाद प्रधानमंत्री के सुरक्षा प्रोटोकॉल में व्यापक बदलाव किया गया था। प्रधानमंत्री के रूट को बेहद गोपनीय रखा जाता है।

प्रधानमंत्री किसी दल विशेष का नहीं, पूरे देश का होता है। किसी राज्य के विकास को लेकर उसके कुछ इरादे होते हैं। योजनाएं होती हैं।प्रधानमंत्री को लेकर कांग्रेसी जिस तरह की बयानबाजी कर रहे हैं, उसका कोई औचित्य नहीं है। एकबारगी यह मान भी लें कि पंजाब के कांग्रेसी और सिख समाज प्रधानमंत्री से नाराज हैं तो भी प्रोटोकॉल के अनुरूप तो मुख्यमंत्री को व्यवहार करना चाहिए। अगर वे इतना सामान्य शिष्टाचार भी नहीं बरत सकते तो प्रधानमंत्री के प्रति उनका कितना सम्मान है, सहज ही प्रकट हो जाता है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश के वे नेता हैं जिन्हें दुनिया भर में विशेष सुरक्षा दी जाती है लेकिन अपने ही देश में उनके साथ जो गैर जिम्मेदाराना व्यवहार किया गया, उसे किसी भी से उचित नहीं कहा जा सकता। जो प्रान्त अपने प्रधानमंत्री को सुरक्षा नहीं दे सकता, वह अपनी सीमा को पड़ोसी देश से कैसे सुरक्षित रख सकता है। जो प्रान्त अपने देश की सेनाओं के युद्धाभ्यास रोक सकता है, उस प्रान्त की सरकार देशहित के लिए कितनी मुफीद है, इस पर विचार करने का वक्त आ गया है।
                  (लेखक हिन्दुस्थान समाचार से सम्बद्ध हैं।)

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