प्रेमचंद जयंती पर मुक्तांचल के 34वें अंक का लोकार्पण

कोलकाता : ‘विद्यार्थी मंच’ द्वारा रविवार प्रेमचंद जयंती के अवसर पर ‘मुक्तांचल’ त्रैमासिक पत्रिका के 34वें अंक का लोकार्पण समारोह का आयोजन किया गया और इसके साथ ही प्रेमचंद पर एक परिचर्चा का भी आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम की अध्यक्षता खुदीराम बोस सेंट्रल कॉलेज की हिंदी विभागाध्यक्ष शुभ्रा उपाध्याय ने की। कार्यक्रम की शुरुआत सरस्वती वंदना से हुई जिसे श्रद्धा गुप्ता ने प्रस्तुत किया। इसके पश्चात मंचासीन सभी विद्वानों ने मुक्तांचल पत्रिका के जुलाई अंक का लोकार्पण किया।

मुक्तांचल पत्रिका की संपादक डॉ. मीरा सिन्हा ने पत्रिका के 34वें अंक के बारे में बताते हुए कहा कि यह पत्रिका लोगों से जुड़ने और जोड़ने का कार्य कर रही है। उन्होंने कहा कि स्वयं को विकसित करने का एक विशेष जरिया साहित्य है क्योंकि साहित्य में सब कुछ समाहित है। इसके साथ ही उन्होंने आपसी संवाद से ‘साहित्यिक माहौल’ बनाने की पहल पर विशेष बल दिया।

प्रेमचंद जयंती कार्यक्रम के प्रथम वक्ता डॉ. विनय मिश्र ने वर्तमान समय में प्रेमचंद की लोकप्रियता पर बात करते हुए कहा कि भारतीय समाज व्यवस्था को समझने में प्रेमचंद का साहित्य सदैव अमर रहेगा। उन्होंने प्रेमचंद की रचनाओं के माध्यम से स्त्री, दलित, जातिवाद और संप्रदायवाद की समस्यायों को उठाते हुए उसे वर्तमान परिप्रेक्ष्य में देखने की बात कही।

कार्यक्रम में मौजूद दूसरे वक्ता जीवन सिंह ने अपने वक्तव्य की शुरुआत प्रेमचंद की प्रासंगिकता से करते हुए कहा कि आज जो समाज में घट रहा है, उसकी भनक प्रेमचन्द को सौ वर्ष पहले हो चुकी थी। अन्य भाषा की रचनाओं से तुलना करते हुए उन्होंने बताया कि आज प्रेमचंद को पढ़ना क्यों जरूरी है। प्रेमचंद के समग्र साहित्य में वर्तमान भारत की समस्यायों पर गहरी चिंता दिखाई पड़ती है। उन्होंने अपने वक्तव्य में कहा कि आज की पीढ़ी को भारतीय समाज की कुव्यवस्था से लड़ने की जरूरत है।

मुख्य वक्ता मिदनापुर कॉलेज ( ऑटोनामस ) के हिंदी प्राध्यापक डॉ. रणजीत सिन्हा ने प्रेमचंद के महत्त्व को उजागर करते हुए बताया कि प्रेमचंद ने भोगे हुए यथार्थ से अपने साहित्य की भूमि तैयार की। उन्होंने वही लिखा जो समाज ने भोगा था, प्रेमचंद के पात्र आज भी हमारे इर्द-गिर्द जीवित हैं। वर्तमान समय में चल रहे तमाम विमर्शों के स्त्रोत प्रेमचंद के साहित्य में मिल जाते हैं।

इसी कड़ी में अगले वक्ता विवेक लाल ने प्रेमचंद के साहित्य पर चर्चा करते हुए कहा कि आधुनिक हिंदी साहित्य में चेतना रूपांतरण के सबसे महत्वपूर्ण रचनाकार प्रेमचंद हैं। प्रेमचंद अपनी दूरदर्शी दृष्टि के कारण सदैव नवीन रहेंगे और आज प्रेमचंद के पाठक को अपने अंदर इंकलाब की चेतना लाने की जरूरत है।

इस अवसर पर उपस्थित श्रीप्रकाश गुप्ता ने कहा कि आज के विद्यार्थी एवं युवा वर्ग को पाठ्यक्रम से इतर भी प्रेमचंद को पढ़ने एवं समझने की जरूरत है क्योंकि समाज में परिवर्तन तभी संभव है जब आज की युवा पीढ़ी प्रेमचंद को नवीन नजरिये से पढ़ेगी।

कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रही डॉ. शुभ्रा उपाध्याय ने अपने अध्यक्षीय भाषण में प्रेमचंद परिचर्चा में मौजूद सभी वक्तातों एवं श्रोताओं को साधुवाद दिया। शुभ्रा उपाध्याय ने कहा कि प्रेमचंद के यहाँ जैसी आत्मीयता और संवेदना मिलती है वैसा अन्यथा मिलना मुश्किल है। आज भी जब हम विमर्शों की बात करते हैं तो हमें सबसे पहले प्रेमचंद के पास जाने की जरूरत है।

कार्यक्रम में मौजूद रितेश पांडे और जीवन सिंह जी ने अपनी स्वरचित कविता का पाठ करके कार्यक्रम को आनंदमय कर दिया। इसके साथ ही अक्षिता साव, अभिषेक पांडे, प्रीति साव एवं श्रद्धा गुप्ता ने भी अपनी स्वरचित कविता तथा ग़ज़लों को प्रस्तुत किया।

अंत में नगीनालाल दास ने धन्यवाद ज्ञापन कर कार्यक्रम में मौजूद सबके प्रति आभार व्यक्त किया। कार्यक्रम का कुशल संचालन परमजीत कुमार पंडित ने किया। कार्यक्रम में मौजूद सुशील कुमार पांडे, विनोद यादव, विनीता लाल, सरिता खोवाला, बलराम साव, सनी चौहान एवं रानी तांती समेत अनेक विद्यार्थियों एवं शोधार्थियों ने अपनी सक्रिय भागीदारी निभायी।

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