इतिहास के पन्नों में 27 मई की तारीख तमाम अहम वजह से दर्ज है। इसी तारीख को 1964 की दोपहर रेडियो पर दो बजे के समाचार में यह बताया गया कि भारत के प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू नहीं रहे। यह खबर आग की तरह पूरी दुनिया में फैल गई। महज दो घंटे बाद नेहरू सरकार के तत्कालीन गृहमंत्री गुलजारी लाल नंदा को कार्यवाहक प्रधानमंत्री बना दिया गया।
इसके बाद शुरू हुई पंडित नेहरू के उत्तराधिकारी की खोज, क्योंकि नेहरू खुद इस बारे में जीते जी कुछ नहीं कह गए थे। उनके उत्तराधिकारी की खोज का जिम्मा मिला उस वक्त कांग्रेस के अध्यक्ष के कामराज को। इस दौरान जो नाम सबसे पहले रेस में आया वो था मोरारजी देसाई का। लेकिन इस नाम पर सहमति नहीं बन पाई। चार दिन की मशक्कत के बाद कांग्रेस ने लाल बहादुर शास्त्री को नेता चुना और इसके साथ ही वह देश के अगले प्रधानमंत्री बने।
नेहरू 16 साल नौ महीने और 12 दिन भारत के प्रधानमंत्री रहे। यह आज तक का रिकॉर्ड है। पंडित नेहरू से निधन के पांच दिन पहले एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में उनसे उत्तराधिकारी के बारे में पूछा गया था तो उन्होंने जवाब दिया कि मैंने इस बारे में सोचना तो शुरू किया है, लेकिन मुझे नहीं लगता कि मेरी मौत इतनी जल्दी होने वाली है। इस प्रेस कॉन्फ्रेंस के अगले दिन वो चार दिन के लिए देहरादून चले गए।
दरअसल जनवरी 1964 में पंडित नेहरू को हार्ट अटैक आया था। इसके बाद से उनकी सेहत खराब रहने लगी थी। 26 मई की रात करीब आठ बजे वो दिल्ली पहुंचे। उस रात वो रातभर करवटें बदलते रहे। उन्हें पीठ और कंधे में दर्द था। सुबह करीब 6ः30 बजे उन्हें पहले पैरालिटिक अटैक आया और फिर हार्ट अटैक। इसके बाद वो अचेत हो गए। इंदिरा गांधी के फोन के बाद तीन डॉक्टर प्रधानमंत्री आवास पहुंचे। उन्होंने पूरी कोशिश की, लेकिन पंडित नेहरू का शरीर रिस्पॉन्स नहीं कर रहा था। कई घंटों की कोशिश के बाद डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया। रेडियो पर पंडित नेहरू के निधन की खबर प्रसारित होते ही प्रधानमंत्री आवास के बाहर लाखों लोगों की भीड़ जुट गई। कहते हैं कि उस दौर मे करीब ढाई लाख लोगों ने उनके अंतिम दर्शन किए थे।