राष्ट्रवादी सरकार को राष्ट्रीयकृत बैंक नहीं बेचना चाहिए, यह परिवार की चांदी है : संजय दास

कोलकाता : देश, बैंक राष्ट्रीयकरण की 54वीं वर्षगांठ मनाने की तैयारी कर रहा है। आज की तारीख में भी बैंक राष्ट्रीयकरण को स्वतंत्र भारत में सबसे अच्छा आर्थिक सुधार माना जाता है जिसने भारतीय अर्थव्यवस्था को काफी हद तक बदल दिया और इसे लगभग डूबने की स्थिति से निकालकर एक भिखारी राज्य से आत्मनिर्भर भारत में बदल दिया। ये बातें बैंकिंग ट्रेड यूनियन नेता व अखिल भारतीय राष्ट्रीयकृत बैंक अधिकारी संघ के महासचिव संजय दास ने कही।

उन्होंने कहा कि राष्ट्रीयकरण से पहले, भारतीय स्टेट बैंक को छोड़कर अधिकांश बैंक निजी स्वामित्व में थे और अमीर और शक्तिशाली लोगों को लाभान्वित करते थे। जुलाई 1969 में 14 निजी बैंकों का राष्ट्रीयकरण, उसके बाद 6 और बाद में, भारतीय बैंकिंग क्षेत्र में क्रांतिकारी बदलाव आया। विशाल रोजगार पैदा हुआ, विस्तारित ऋण और लाभान्वित कृषि और गरीब और चारों ओर विकास दिखाई दे रहा था और जो अगले 4-5 सालों में जीडीपी वृद्धि के माध्यम से परिलक्षित हुआ।
उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार के निर्णयों से अतिव्यापी व अलाभकारी शाखाएं बंद होंगी, बेरोजगारी बढ़ेगी, आरक्षण समाप्त होगा, लोगों की जमा पूंजी दांव पर होगी, छोटे किसान, खुदरा व्यापारी, छोटे व्यवसायी, उद्यमी, छात्र कम ब्याज और आसान शर्तों पर ऋण लेने से वंचित रहेंगे। पूरी अर्थव्यवस्था को कलंकित कर दिया जाएगा।

दास ने कहा कि पीएसयू बैंक सोने के हंस हैं, वे परिवार की चांदी हैं। इसे बेचा नहीं जाना चाहिए।
बैंकर, ग्राहक, आम लोग, ग्रामीण, एसएचजी सदस्य इसका जमकर विरोध कर रहे हैं।
आंदोलन में हिस्सा लेने के लिए समाज के हर तबके के लोग आगे आ रहे हैं, एक राष्ट्रवादी सरकार को राष्ट्रीयकृत बैंकों को बचाना चाहिए।

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