इतिहास के पन्नों में 21 नवंबरः दुनिया ‘इसलिए’ याद करती है टेलीविजन को

देश-दुनिया के इतिहास में 21 नवंबर की तारीख तमाम अहम वजह से दर्ज है। इस तारीख का खास रिश्ता टेलीविजन की जादुई यात्रा से है। सारी दुनिया में 21 नवंबर को टेलीविजन दिवस मनाया जाता है। इसकी वजह यह है कि वर्ष 1966 में इसी तारीख को संयुक्त राष्ट्र ने पहला वर्ल्ड टेलीविजन फोरम आयोजित किया गया। इसके खोज की कहानी बेहद दिलस्चप है।

हमारे देश भारत में टीवी सिर्फ टेलीविजन नहीं है। वह मनोरंजक बक्सा है। उसमें गजब का आकर्षण है। जब लोगों के हाथ में मोबाइल फोन नहीं आया था, तब अगर किसी के घर में टीवी आता था तो पड़ोसी ही नहीं, सारा मोहल्ला उसके दर्शन करने आ पहुंचता था। आज हाल ये है कि हम जहां चाहें, जब चाहें टीवी देख सकते हैं। एक समय टीवी को भी बुद्धू बक्से की संज्ञा दी गई थी। लेकिन यही वह टीवी था जिसके सामने लोग रामायण देखने से पहले अगरबत्ती भी लगाते थे।

टेलीविजन शब्द की उत्पत्ति की जड़ें खाेदी जाएं तो साफ होता है कि यह शब्द प्राचीन ग्रीक भाषा के शब्द ‘टेली’ यानी दूर और लातिन के विजियो शब्द यानी ‘देखना’ से बना है। समझ सकते हैं कि दूूरदर्शन नाम कहां से आया होगा। इलेक्ट्रिक टेलीविजन से पहले दुनिया में मैकेनिकल टेलीविजन हुआ करता था। जिस प्रकार दुनिया के कई महान आविष्कार आकस्मिक हुए हैं, उसी प्रकार लाइट को इलेक्ट्रिक सिग्नल में बदलने का आविष्कार भी सहसा हुआ।

साल 1872 में ट्रांसअटलांटिक केबल में काम की चीज ढूंढते हुए अंग्रेज टेलीग्राफ वर्कर जोसेफ ने देखा कि सेलेनियम वायर की इलेक्ट्रिकल कंडक्टिविटी में अंतर आ रहा है। कारण खोजने पर पता चला कि खिड़की से आ रही सूरज की किरणों के कारण ऐसा हुआ। यह किरणें सेलेनियम के वायर पर पड़ रही थीं। इस घटना से विद्युत को एक इलेक्ट्रिक सिग्नल में बदलने का आधार तैयार हुआ।

1880 में फ्रेंच इंजीनियर मॉरिस ला ब्लां का ‘ला लुमिएर इलेक्ट्रिक’ जर्नल में लेख प्रकाशित हुआ। इस लेख ने भविष्य के टेलीविजन के लिए विस्तृत आधार तैयार किया। ला ब्लां ने एक स्कैनिंग मैकेनिज्म प्रस्तावित किया। हालांकि, वे कोई वर्किंग मशीन तैयार नहीं कर पाए थे। टेलीविजन को अगले मुकाम तक पहुंचाने में जमर्न इंजीनियर पॉल निपकोव की भूमिका अहम है। उन्होंने स्कैनिंग डिस्क की ईजाद की थी। निपकोव ने जो डिवाइस तैयार किया, वह एक घूमने वाली धातु की डिस्क से तार के माध्यम से तस्वीरें भेजने में सक्षम था। निपकोव ने इसे ‘इलेक्ट्रिक टेलीस्कोप’ कहना पसंद किया।

टेलीविजन शब्द रूसी वैज्ञानिक कॉन्स्तेन्ताइन परस्की द्वारा 1900 की पेरिस प्रदर्शनी में पहली बार इस्तेमाल किया गया। मैकेनिकल टीवी में बड़ी उपलब्धि हासिल की थी स्कॉटिश आविष्कारक जॉन लॉगी बेयर्ड और अमेरिकन आविष्कारक चार्ल्स फ्रांसिस जेनकिंस ने। इन दोनों ने अपने-अपने जो डिवाइस बनाए थे, उन्हें पहला सफल टेलीविजन माना जाता है। 1922 में जेनकिंस ने रेडियो तरंग के माध्यम से एक स्थिर तस्वीर को स्क्रीन पर भेजी थी, लेकिन जिसे वाकई में टेलीविजन के लिए एक सफलता मान सकते हैं वो यह थी कि 1925 में बेयर्ड ने मनुष्य के चेहरे का लाइव ट्रांसमिशन कर दिया। 1925 में आविष्कारक व्लादिमीर ज्वोरीयकिन ने कलर टीवी सिस्टम की परिकल्पना की। हालांकि यह सिस्टम तब वास्तविकता में तब्दील न हो पाया।

विश्व का पहला इलेक्ट्रॉनिक टेलीविजन फिलो टेलर फार्न्सवर्थ नामक एक अति मेधावी आविष्कारक ने प्रस्तुत किया। फिलो डिवाइस मूविंग इमेज को इलेक्ट्रॉन्स बीम की सहायता से पकड़ने में सफल हुए।

स्कॉटिश आविष्कारक बेयर्ड पहले शख्स हैं जिन्होंने 03 जुलाई 1928 को पहली बार कलर ट्रांसमिशन कर दिखाया। 1930 में पहला कमर्शियल प्रोग्राम चार्ल्स जेनकिंस के टेलीविजन आया। इसके बाद बीबीसी ने नियमित टीवी ट्रांसमिशन शुरू किया। 1934 तक सारे मैकेनिकल टीवी इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम पर आ चुके थे। और इस बात में भी कोई संदेह नहीं है कि प्राथमिक टेलीविजन फुटेज ट्रांसमिशन श्वेत श्याम रंग में ही कर पाते थे। रंगीन टीवी की बात करें तो इसका पेटेंट 1904 में एक जर्मन आविष्कारक ने करवाया था। हालांकि आविष्कारक के पास कोई कलर टेलीविजन नहीं था।

1939-40 में टेलीविजन पूरे अमेरिका के कई मेलों में दिखाया गया। कुछ मॉडल्स के साथ में रेडियो भी था, ताकि स्क्रीन पर आने वाली तस्वीरों के साथ ऑडियो भी सुना जा सके। 1950 में दो बड़ी कम्पनियों सीबीएस (कोलम्बिया ब्रॉडकास्टिंग सिस्टम) और आरसीए (रेडियो कॉर्पाेरेशन ऑफ अमेरिका) के बीच पहला कलर टेलीविजन बनाने की होड़ लगी। इस जंग में सीबीएस ने बाजी मारी। यह डिवाइस जॉन बेयर्ड के सिस्टम पर आधारित मैकेनिकल टेलीविजन था।

1950 में ही जेनिथ रेडियो कॉर्पाेरेशन ने पहला रिमोट बनाया। इसे टीवी से एक तार से जोड़ा गया। 1955 में युजीन पॉली ने वायरलेस रिमोट तैयार किया। 25 जून, 1951 को सीबीएस नामक एक अमेरिकन ब्रॉडकास्टिंग कम्पनी ने पहला कमर्शियल कलर टीवी प्रोग्राम चलाया। दुर्भाग्यवश, यह लगभग अनदेखा ही रह गया, क्योंकि उस वक्त अधिकतर लोगों के पास ब्लैक एंड व्हाइट टीवी हुआ करता था। पूरे अमेरिका में इसे मात्र 12 ग्राहक देख पाए थे।

भारत में टेलीविजन का आगमन दिल्ली में 15 सितम्बर, 1959 को एक्सपेरिमेंटल ट्रांसमिशन के तहत हुआ।

सितम्बर 1961 में वॉल्ट डिज्नी के वंडरफुल ‘वर्ल्ड ऑफ कलर’ का प्रीमियर एक टर्निंग पाॅइंट साबित हुआ और इसने लोगों को कलर टीवी लेने के लिए प्रेरित किया। 1960 और 1970 के दशक में विश्व के अधिकतर क्षेत्रों में टेलीविजन ब्रॉडकास्टिंग स्टेशन और नेटवर्क ब्लैक एंड वाइट टीवी से अपग्रेड होकर कलर ट्रांसमिशन पर आ गए। 1968 में जापानी टेलीविजन नेटवर्क एनएचके ने एक नया टेलीविजन स्टैंडर्ड बनाना शुरू किया। यह बाद में हाई डेफिनिशन टेलीविजन या एचडीटीवी के नाम से जाना गया। 1969 में करीब 65 करोड़ लोगों ने चंद्रमा पर मनुष्य की चहलकदमी टीवी पर देखी। 1972 में टेलीविजन की सेवाएं मुम्बई से शुरू हुईं। 1975 में टेलीविजन स्टेशन कोलकाता, चेन्नई, श्रीनगर, अमृतसर और लखनऊ में स्थापित हुए। 1975-76 में देश के बेहद अविकसित और दूरस्थ 2400 गांवों के लोगाें के लिए सैटेलाइट इंस्ट्रक्शनल टेलीविजन एक्सपेरिमेंट के तहत एक वर्ष के लिए टेलीविजन कार्यक्रमों की शुरुआत की गई।1983 में एनएचके नेटवर्क ने स्विट्जरलैंड में हुई कॉन्फ्रेंस को एचडीटीवी के माध्यम से लाइव किया। 1982 में भारत में सेटेलाइट के माध्यम से राष्ट्रीय कार्यक्रम, कलर ट्रांसमिशन और नेटवर्किंग शुरू हुई। वर्ष 2000 में भारत में एक टीवी चैनल था। इनकी संख्या 2009 में बढ़कर 394 हो गई। आज चैनल्स की संख्या 900 से अधिक है।

 

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