दोषी ठहराए गए भ्रष्ट व्यक्तियों का सार्वजनिक महिमामंडन कार्यपालिका, न्यायपालिका और संविधान की अखंडता के लिए हानिकारक : प्रधानमंत्री

नयी दिल्ली : प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सार्वजनिक जीवन में बदलते मानदंडों पर विचार करते हुए जवाबदेही की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि अब हम दोषी ठहराए गए भ्रष्ट व्यक्तियों का सार्वजनिक महिमामंडन देख रहे हैं, जो कार्यपालिका, न्यायपालिका और संविधान की अखंडता के लिए हानिकारक है।

प्रधानमंत्री ने वीडियो संदेश के माध्यम से अखिल भारतीय पीठासीन अधिकारियों के सम्मेलन को संबोधित किया। विधायी निकायों के भीतर मर्यादा बनाए रखने के मुद्दे पर प्रधानमंत्री ने कहा, “सदन में सदस्यों का आचरण और उसमें अनुकूल वातावरण सीधे विधानसभा की उत्पादकता को प्रभावित करता है। इस सम्मेलन से निकले ठोस सुझाव उत्पादकता बढ़ाने में सहायक होंगे।” उन्होंने कहा कि प्रतिनिधियों द्वारा सदन में आचरण से सदन की छवि तय होती है। मोदी ने इस बात पर अफसोस जताया कि पार्टियां अपने सदस्यों के आपत्तिजनक व्यवहार पर अंकुश लगाने की बजाय उनके समर्थन में उतर आती हैं। उन्होंने कहा, “यह संसद या विधानसभाओं के लिए अच्छी स्थिति नहीं है।”

प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, “पहले अगर सदन के किसी सदस्य पर भ्रष्टाचार का आरोप लगता था तो सार्वजनिक जीवन में सभी उससे दूरी बना लेते थे। आज हम कोर्ट से सजा पाए भ्रष्टाचारियों का भी सार्वजनिक रूप से महिमामंडन होते देखते हैं। ये कार्यपालिका, न्यायपालिका और संविधान का भी अपमान है। प्रधानमंत्री ने सम्मेलन के दौरान इस मुद्दे पर चर्चा करने और ठोस सुझाव देने के महत्व पर जोर दिया।

75वें गणतंत्र दिवस समारोह के मद्देनजर होने वाले सम्मेलन के महत्व पर जोर देते हुए प्रधानमंत्री ने कहा, “यह सम्मेलन और भी खास है, यह सम्मेलन भारत के 75वें गणतंत्र दिवस समारोह के तुरंत बाद हो रहा है। 75 साल पहले 26 जनवरी को हमारा संविधान लागू हुआ था, यानी आज संविधान को 75 साल भी पूरे हो रहे हैं। मैं देशवासियों की ओर से संविधान सभा के सभी सदस्यों को आदरपूर्वक नमन करता हूं।

संविधान सभा से सीखने के महत्व पर विचार करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, “हमारी संविधान सभा से सीखने के लिए बहुत कुछ है। संविधान सभा के सदस्यों पर विभिन्न विचारों, विषयों और मतों के बीच आम सहमति बनाने की जिम्मेदारी थी और वे इस पर खरे उतरे।” प्रधानमंत्री ने उपस्थित पीठासीन अधिकारियों की भूमिका पर प्रकाश डालते हुए उनसे एक बार फिर संविधान सभा के आदर्शों से प्रेरणा लेने का आग्रह किया। उन्होंने जोर देकर कहा, “अपने-अपने कार्यकाल में, एक ऐसी विरासत छोड़ने का प्रयास करें, जो आने वाली पीढ़ियों के लिए विरासत के रूप में काम कर सके।”

विधायी निकायों की कार्यक्षमता बढ़ाने की आवश्यकता पर प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, “विधानसभाओं और समितियों की दक्षता बढ़ाना आज के परिदृश्य में महत्वपूर्ण है, जहां सतर्क नागरिक प्रत्येक प्रतिनिधि की जांच करते हैं।”

भारत की प्रगति को आकार देने में राज्य सरकारों और उनकी विधान सभाओं की महत्वपूर्ण भूमिका को स्वीकार करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा, “भारत की प्रगति हमारे राज्यों की उन्नति पर निर्भर करती है और राज्यों की प्रगति सामूहिक रूप से उनके विकास लक्ष्यों को परिभाषित करने के लिए उनके विधायी और कार्यकारी निकायों के दृढ़ संकल्प पर निर्भर करती है। आर्थिक प्रगति के लिए समितियों को सशक्त बनाने के महत्व पर प्रधानमंत्री ने कहा, “आपके राज्य की आर्थिक प्रगति के लिए समितियों का सशक्तीकरण महत्वपूर्ण है। ये समितियां निर्धारित लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए जितनी सक्रियता से काम करेंगी, राज्य उतना ही आगे बढ़ेगा।”

कानूनों को सुव्यवस्थित करने की आवश्यकता पर बल देते हुए प्रधानमंत्री ने अनावश्यक कानूनों को निरस्त करने में केंद्र सरकार के प्रयासों पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा, “पिछले एक दशक में केंद्र सरकार ने दो हजार से अधिक कानूनों को निरस्त कर दिया है, जो हमारी प्रणाली के लिए हानिकारक थे। न्यायिक प्रणाली के इस सरलीकरण ने आम आदमी के सामने आने वाली चुनौतियों को कम किया है और जीवनयापन में आसानी को बढ़ाया है।” मोदी ने पीठासीन अधिकारियों से अनावश्यक कानूनों और नागरिकों के जीवन पर उनके प्रभाव पर ध्यान देने का आह्वान करते हुए इस बात पर जोर दिया कि उनके हटाने से महत्वपूर्ण सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।

प्रधानमंत्री मोदी ने नारी शक्ति वंदन अधिनियम का जिक्र करते हुए महिलाओं की भागीदारी और प्रतिनिधित्व बढ़ाने के उद्देश्य से सुझावों पर चर्चा को प्रोत्साहित किया। उन्होंने कहा, “भारत जैसे देश में महिलाओं को सशक्त बनाने और समितियों में उनका प्रतिनिधित्व बढ़ाने के प्रयासों को बढ़ाया जाना चाहिए।” इसी तरह उन्होंने समितियों में युवाओं की भागीदारी बढ़ाने की जरूरत पर बल दिया। मोदी ने जोर देकर कहा, “हमारे युवा प्रतिनिधियों को अपने विचार रखने और नीति-निर्माण में भागीदारी का अधिकतम अवसर मिलना चाहिए।”

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