भारत-जापान मैत्री के लिए खास है यह साल

                                                     आर.के. सिन्हा                 भारत-जापान संबंधों के लिए मौजूदा साल 2022 मील का पत्थर है। दरअसल दोनों देशों के बीच 1950 में ही सकारात्मक राजनयिक संबंधों का श्रीगणेश हुआ था। दोनों देशों को भगवान बुद्ध के अलावा शांति, अहिंसा तथा भाईचारा के संदेश ही करीब लाते थे। बौद्ध धर्म के अलावा जापान में गुरुदेव रविन्द्रनाथ टेगौर का भी बहुत सम्मान किया जाता है। इसके साथ ही टोक्यो यूनिवर्सिटी में हिन्दी का अध्यापन साल 1908 से ही चालू हो गया था। भारत से बाहर सबसे पहले हिन्दी की टोक्यो यूनिवर्सिटी में ही पढ़ाई चालू हुई थी। भारत के स्वतन्त्रता संघर्ष के दौरान भी जापान की शाही सेना ने सुभाष चन्द्र बोस की आजाद हिन्द फौज को सहायता प्रदान की थी। तो इस तरह भारत और जापान को कई बिन्दु करीब लाते हैं।

दरअसल, जापान उन देशों में से नहीं है जो किसी से व्यापारिक संबंध बनाते हुए अन्य देश का शोषण करने के संबंध में सोचता हो। जापान ने विगत सत्तर साल के दौरान विभिन्न परियोजनाओं को धन उपलब्ध करवाने में भारत की खुले हाथ मदद की है। अब जापान की मदद से ही भारत में बुलेट ट्रेन प्रोजेक्ट आ रहा है। जापान दूसरे देशों को जिस दर पर ऋण देता है, उससे काफी कम दर पर भारत को मुंबई-अहमदाबाद बुलेट ट्रेन परियोजना के लिए जरूरी राशि मुहैया करा रहा है।

ऋण वापसी की मियाद भी 25 वर्षों की जगह 50 वर्ष रखी गयी है। आर्थिक दिक्कत से जूझ रहे दिल्ली मेट्रो रेल निगम के चौथे फेज के निर्माण में तेजी लाने के लिए जापानी कंपनी जापान इंटरनेशनल कॉ-ऑपरेशन एजेंसी ने मदद का हाथ बढ़ाया है। यह कंपनी चौथे चरण के ट्रैक के निर्माण के लिए आर्थिक मदद देने के लिए तैयार हो गई है। इस बाबत जरूरी प्रक्रिया भी शुरू हो गई है। माना जा रहा है कि आर्थिक मदद मिलते ही दिल्ली मेट्रो के चौथे चरण के निर्माण कार्य में और तेजी आएगी। कोरोना वायरस संक्रमण के चलते बंद रही दिल्ली मेट्रो को 1500 करोड़ रुपये के आसपास का घाटा हो गया। ऐसे में नए प्रोजेक्ट के लिए आर्थिक दिक्कत आ रही थी।

भारत में जापान की दर्जनों कंपनियों ने अरबों रुपये का निवेश किया है। उन पर कभी कोई इस तरह के आरोप नहीं लगा सका है, जिससे कोई उनकी मंशा पर सवाल खड़ा करता हो। दिल्ली, मुंबई, गुरुग्राम,नोएडा वगैह में हजारों जापानी नागरिक भारत के विकास में अपना योगदान दे रहे हैं। भारत में रहने वाले जापानी नागरिक भारत के उज्ज्वल भविष्य को लेकर बेहद आशावादी हैं। ये जापानी होंडा सिएल कार, होंडा मोटरसाइकिल, मारुति, फुजी फोटो फिल्मस, डेंसो सेल्ज लिमिटेड, डाइकिन श्रीराम एयरकंडशिंनिंग, डेंसो इंडिया लिमिटेड समेत लगभग दो दर्जन जापानी कंपनियों के भारत के विभिन्न भागों में स्थित दफ्तरों और फैक्ट्रियों में काम करते हैं। ये भगवान बुद्ध के अनुयायी तो हैं ही । ये भारतभूमि को गौतम बुध की भूमि होने के कारण ही पूजनीय मानते हैं । ये मानते हैं कि भगवान बौद्ध का जीवन समाज से अन्याय को दूर करने के लिए समर्पित था। उनकी करुणा भावना ने ही उन्हें विश्व भर के करोड़ों लोगों के ह्रदय तक पहुंचाया। इन जापानियों में भी भारतीय संस्कार ही हैं। ये आदतन मितव्ययी होते हैं। ये भी भारतीयों की तरह ही संयुक्त परिवार की संस्था को महत्व देते हैं। अगर कुछ जापानी एक-दूसरे के करीब रहते हैं, तब ये कार पूल करके ही दफ्तर जाना पसंद करते हैं। तो यह कह सकते हैं कि आमतौर पर दोनों देशों की नैतिकताएं मिलतीजुलती हैं।

निश्चित रूप से जापान भारत को विशेष मित्र का दर्जा देता है। जापान भारत से अपने को भावनात्मक स्तर पर करीब पाता है। जापान से भारत में हर साल हजारों की संख्या में बुद्ध धर्म को मानने वाले तीर्थयात्री आते हैं। बौद्ध अनुयायियों का गौतम बुद्ध की जन्मस्थली भारत को लेकर आकर्षण स्वाभाविक है। बोधगया-राजगीर-नालंदा सर्किट देश के सबसे खासमखास पर्यटन स्थलों में माना जाता हैं। राजधानी के इंद्रप्रस्थ पार्क में स्थित विश्व शांति स्तूप की व्यवस्था करती हैं कात्सू सान। वो मूलतः जापानी हैं। वो सन 1956 में ही भारत आ गईं थीं, भारत और बुद्ध धर्म को करीब से जानने के इरादे से। एक बार भारत आने के बाद यहां पर उनका मन इस तरह से लगा कि फिर उन्होंने यहां पर बसने का ही निर्णय ले लिया। वो भारत को संसार का आध्यात्मिक विश्व गुरु मानती हैं।

कात्सू जी धारा प्रवाह हिन्दी बोलती हैं। उन्होंने हिन्दी प्रसिद्ध साहित्यकार काका साहेब कालेलकर जी से सीखी थी। वो राजधानी में सरकार की तरफ से होने वाली सर्वधर्म प्रार्थना सभाओं का गुजरे दशकों से एक स्थायी अंग हैं। आगामी 30 जनवरी को गांधी जी के बलिदान दिवस पर राजघाट में होने वाली प्रार्थना सभा में भी वे भाग लेंगी। वो कहती हैं कि भारत- जापान मैत्री अटूट है, क्योंकि इसका आधार भगवान बुद्ध हैं जो भारत से हैं।

भारत-जापानी संबंधों पर बात करते हुए चीनी दृष्टिकोण को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। जापान के उपप्रधानमंत्री के तौर पर तारो असो 2006 में भारत के दौरे पर आए थे। उस वक़्त उन्होंने कहा था, ”अतीत के 1500 सालों से भी ज़्यादा वक़्त से इतिहास का ऐसा कोई वाक़या नहीं है, जब चीन के साथ हमारा संबंध ठीकठाक रहा हो। इस बीच, भारत और चीन के संबंध भी कतई मौत्रीपूर्ण नहीं माने जा सकते। चीन ने भारत की हजारों एकड़ जमीन पर कब्जा जमाया हुआ है। भारत-चीन के बीच सीमा विवाद हल होने का नाम ही नहीं ले रहे हैं, क्योंकि, चीन की नीति कभी पारदर्शी रही ही नहीं। वो भारत के शत्रु पाकिस्तान का परम मित्र भी हैं। तो भारत-जापान की चीन को लेकर स्थिति भी लगभग एक है। इसलिए दोनों देशों को चीन का भी हर स्तर पर मुकाबला करना होगा।

(लेखक वरिष्ठ संपादक, स्तभकार और पूर्व सांसद हैं)

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