विश्व कैंसर दिवस 04 फरवरी पर विशेष : असमय मौत का बड़ा कारण बना कैंसर

                                              – सुरेन्द्र कुमार किशोरी लगातार प्रगति करते वैज्ञानिक युग में कैंसर का इलाज अब भले उपलब्ध हो गया है, लेकिन आज भी यह एक ऐसी बीमारी है जिसका नाम सुनकर बड़े-बड़ों का कलेजा कांप उठता है। इसके लक्षण की जानकारी नहीं होने और इसी वजह से उचित समय पर इलाज नहीं होने के कारण आज भी अधिकतर कैंसर रोगियों की मौत हो जाती है। एक आंकड़े के अनुसार भारत में प्रत्येक 50 सेकेंड में एक कैंसर रोगी बन रहा है। देश में कैंसर रोग आजकल युवाओं को भी चपेट में ले रहा है तथा उनमें यह आक्रामक, अधिक विकसित अवस्था में पाया जा रहा है।

चिंताजनक स्थिति यह है कि विश्व का 21 प्रतिशत कैंसर मरीज सिर्फ भारत में है। यदि एड्स, मलेरिया, टीबी रोगों से असमय मौतों को जोड़ दें तो देश में अकेले कैंसर रोग से मृत्यु इन सबों के जोड़ से अधिक है।

कैंसर के लगातार बढ़ते मरीजों की संख्या को देखते हुए प्रत्येक साल 04 फरवरी को अंतरराष्ट्रीय कैंसर दिवस मनाया जाता है, ताकि अधिक से अधिक लोगों को इसके प्रति जागरूक किया जा सके। विश्व कैंसर दिवस की शुरुआत 2005 से हुई थी और तब से यह दिन विश्व में कैंसर के प्रति निरंतर जागरुकता फैला रहा है। भारत में भी इस दिन सभी स्वास्थ्य संगठनों ने जागरुकता फैलाने का निश्चय लिया है। 2022 से 2024 तक विश्व कैंसर दिवस का थीम है ”क्लोज द केयर गैप’’। थीम का पहला वर्ष दुनिया भर में कैंसर देखभाल असमानताओं की पहचान करने और उनका आकलन करने के लिए समर्पित किया गया है। कैंसर कई प्रकार के होते हैं और उनके होने के कारण भी अलग-अलग होते हैं।

दवाओं के साइड इफेक्ट्स, धूम्रपान, अधिक वजन, पौष्टिक आहार का अभाव, तंबाकू, और व्यायाम नहीं करना कैंसर बढ़ने का प्रमुख कारण है।

हाल के कुछ वर्षों में भारत में पश्चिमी संस्कृति को अपनाने और बर्गर-कोला संस्कृति के जंक-फास्ट फूड सेवन से कैंसर कहीं न कहीं जुड़ा हुआ है। जीवन शैली में परिवर्तन लाकर, शारीरिक सफाई पर ध्यान देकर, खासकर जननांगों की सफाई, तम्बाकू, मादक पदार्थों से दूर रहकर, सक्रिय कसरत, योग, तेज टहलना, सकारात्मक विचारों को अपनाकर, आध्यात्मिक लगाव, अहिंसा अपनाकर, मानसिक अवसादों से बचकर, जंक, फास्ट फूड खाने से परहेज रख कर, यौन रोगों से बच कर और शुरुआती अवस्था में ही कैंसर रोगों की पहचान और समुचित इलाज करा कर कैंसर जैसे जानलेवा रोगों से बचा जा सकता है क्योंकि कैंसर से बचाव ही कैंसर का इलाज है। कैंसर के प्रति लोगों को जागरूक करने की दिशा में काम कर रहे कैंसर अवेयरनेस सोसायटी के सदस्य बताते हैं कि आज कैंसर युवाओं और महिलाओं में तेजी से बढ़ रहा है।

कैंसर होने का यूं तो कई कारण है, लेकिन सबसे बड़ा कारण है धूम्रपान और तंबाकू जनित पदार्थों का सेवन। सभी प्रकार के कैंसर रोगों का 40 फीसदी कारण तम्बाकू उत्पादों का सेवन है। बिहार में पहले 53.5 प्रतिशत आबादी तम्बाकू के गिरफ्त में थी, लेकिन जन जागरूकता के बाद गेट्स-2 के 2017 के रिपोर्ट के आधार पर अब 25.9 प्रतिशत पर आ गई है। मुंह, गला एवं फेफड़ा के कैंसर का 90-95 प्रतिशत कारण तम्बाकू सेवन है। भारत में प्रत्येक 24 घंटे में 28 सौ लोग तम्बाकू सेवन के कारण कैंसर सहित अन्य रोगों से असमय मर रहे हैं। तम्बाकू के धुएं में 60 से भी अधिक कैंसर जनक रसायन मौजूद हैं।

प्रारंभिक अवस्था में कैंसर की पहचान एवं समुचित इलाज से मरीज ठीक हो सकता है। विश्व में एक मिनट में 17 लोग कैंसर रोगों के कारण मर रहे हैं। तम्बाकू उत्पादों का सेवन कर रहे लोग जागरुकता के अभाव में अपनी लत को छोड़ने के बदले निकोटीन के प्रभाव में इसके जाल में फंसते चले जाते हैं। तम्बाकू उत्पादों का सेवन मुंह, गला, फेफड़ा, लिवर, पैंक्रियाज, किडनी, पेशाब की थैली, बच्चेदानी सहित अन्य अंगों के कैंसर का प्रमुख कारण बन गया है। यह मस्तिष्काघात, हृदयाघात, दम्मा, तपेदिक, सांस की गंभीर बीमारियां, हार्ट अटैक, डायबिटीज, उच्च रक्तचाप का भी प्रमुख कारण बनता जा रहा है। तंबाकू सेवन करने वालों की आधी आबादी बीमारियों की वजह से असमय मर रहे हैं।

तम्बाकू सेवन से जुड़े रोगों के इलाज में भारत का करीब 38 हजार करोड़ से भी अधिक धनराशि प्रति वर्ष खर्च हो रहा है। कैंसर के 90 फीसदी पीड़ित मरीज, धूम्रपान, गुटखा, खैनी, बीड़ी, गुल समेत अन्य तम्बाकू उत्पादों के सेवन के पाए गए हैं। तम्बाकू के धुएं में करीब सात हजार रसायन है। जिसमें 250 से ज्यादा रसायन कैंसर, सांस की गम्भीर बीमारियों, हृदय रोगों सहित अन्य रोगों को जन्म देते है। 60 से 70 रसायन प्रमाणित कैंसर जनक हैं। तम्बाकू सेवन से प्रत्येक साल विश्व में 80 लाख से भी अधिक लोगों की असमय मृत्यु हो जाती है। सेकंड हैंड स्मोक (पैसिभ स्मोकिंग) दुनिया में प्रति वर्ष लगभग नौ लाख लोगों की अकाल मृत्यु का कारण है।

कैंसर विश्व स्तर पर हृदय रोगों के बाद असमय मृत्यु का दूसरा सबसे बड़ा कारण है। तंबाकू और धूम्रपान नहीं करने से 30 से 50 प्रतिशत कैंसर रोगों से मृत्यु को रोका जा सकता है। तम्बाकू उत्पादों का सेवन 35 से 40 फीसदी कैंसर रोगों का कारण है। हिपेटाइटिस-बी और एचपीवी टीकाकरण को अपनाया जाय तो विश्व में करीब दस लाख लोगों में कैंसर रोग को प्रतिवर्ष रोक सकते हैं। कैंसर जनक तत्व शरीर की कोशिकाओं के डीएनए पर दुष्प्रभाव डालकर कोशिकाओं के अनियंत्रित, असामान्य वृद्धि को बढ़ाकर कैंसर को जन्म देते हैं।

महिलाओं में सर्वाइकल कैंसर तेजी से फैल रहा है। यहां पूरे विश्व का एक लगभग चौथाई सर्वाइकल कैंसर के मरीज हैं। भारत में इसी तरह महिलाओं में स्तन कैंसर के मरीज बढ़ते रहे तो सन 2030 तक प्रतिवर्ष दो लाख से भी अधिक स्तन कैंसर के नए मरीज पहचान में आने लगेंगे।

कुछ विकसित देशों में बढ़िया स्क्रीनिग प्रोग्राम के कारण इस कैंसर की दरों में लगभग 80 फीसदी कमी आई है। अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर महिला आबादी में स्तन कैंसर के बढ़ रहे खतरों पर जागरूकता-बचाव अभियानों के प्रति संकल्प को मजबूत बनाने के लिए प्रति वर्ष अक्टूबर महीना में विशेष कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं। भारत में भी खासकर शहरी इलाकों में महिलाओं में कैंसर रोगों में स्तन कैंसर महिलाओं में कुल कैंसर का 25 से 32 प्रतिशत पाया जाने लगा है। जबकि ग्रामीण महिलाओं में आज भी सरवाइकल कैंसर, यानी बच्चेदानी के मुख का कैंसर के मरीज कैंसर रोगों में सर्वाधिक हैं।

स्तन कैंसर का लगभग 48 फीसदी मरीज 50 वर्ष से कम उम्र के हैं, आजकल 25 से 40 वर्ष की हिंदुस्तानी महिलाओं में इस कैंसर के अधिक मरीज मिल रहे हैं। युवा वर्ग में स्तन कैंसर काफी आक्रामक भी होता है।
जागरुकता, शिक्षा में कमी, रोगों को चिकित्सकों को बताने में शर्म, झिझक के कारण स्तन कैंसर के विकसित अवस्था में 80 प्रतिशत रोगी इलाज के लिए पहुंचते हैं। जबकि अमेरिका जैसे विकसित देशों में शुरुआती अवस्था में ही 60 फीसदी से अधिक मरीज इलाज के लिए अस्पतालों में चले आते हैं। सर्जरी, रेडियोथेरेपी, कीमोथेरेपी, हॉर्मोन थिरेपी, जीन थेरेपी,इम्यून थेरेपी जैसे आधुनिक चिकित्सा प्रणालियों से बेहतर इलाज किया जा सकता है।

केरल जो सर्वाधिक शिक्षित राज्य है, वहां महिलाओं में स्तन कैंसर कुल कैंसर रोगों में सर्वाधिक है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने एचपीवी टीकाकरण और असरदार स्क्रीनिंग को इस कैंसर से बचाव का अच्छा उपाय बताया है। यह लगभग मान लिया गया है कि यदि कुल एक लाख की आबादी में यदि चार या कम सर्वाइकल कैंसर के मरीज का पता चले, तो इस इसे इस कैंसर का उन्मूलन कह सकते हैं, डब्ल्यूएचओ ने 2030 तक इसे प्राप्त करने का लक्ष्य रखा है।

कैंसर रोगों को शुरुआती अवस्था में ही पहचान और समुचित इलाज के लिए टार्गेटेड स्क्रीनिंग-सह-उपचार कैम्प के साथ निःशुल्क सेवा प्रदाताओं और सरकारी अस्पतालों की सम्मिलित भागीदारी को भी एक प्लेटफॉर्म पर लाना होगा। हम सब हिदुस्तानी ”क्लोज द केयर गैप” को आत्मसात कर देश को स्वस्थ, शक्तिशाली, विकसित बनाने के लिए कैंसर मुक्त समाज, तम्बाकू मुक्त परिवेश बनाने का दृढ़ संकल्प लें।

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