इतिहास के पन्नों में 12 जनवरीः फांसी से पहले अमर बलिदानी का संदेश- क्रांतिकारियों कभी न भूलना

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में चटगांव विद्रोह का नेतृत्व करने वाले महान क्रांतिकारी सूर्य सेन को 12 जनवरी 1934 को चटगांव सेंट्रल जेल में फांसी दी गई। फांसी देने से पहले ब्रिटिश हुकूमत ने बर्बरता की तमाम सीमाएं लांघ दी। फांसी से पूर्व उन्हें शारीरिक यातनाएं दी गईं, उनके दांत तोड़ दिए गए, नाखून उखाड़ लिए गए। बेहोशी की हालत में उन्हें फांसी दी गई। बाद में उनके पार्थिव शरीर को पिंजड़े में कैद कर बंगाल की खाड़ी में फेंक दिया गया। फांसी से पूर्व उन्होंने अपने दोस्तों को एक संदेश लिखा-

“मौत मेरे दरवाजे पर दस्तक दे रही है। मेरा मन अनन्तकाल की ओर उड़ रहा है … ऐसे सुखद समय पर, ऐसे गंभीर क्षण में, मैं तुम सबके पास क्या छोड़ जाऊंगा? केवल एक चीज, यह मेरा सपना है, एक सुनहरा सपना- स्वतंत्र भारत का सपना …. कभी भी 18 अप्रैल, 1930, चटगांव के विद्रोह के दिन को मत भूलना … देशभक्तों के नाम को स्वर्णिम अक्षरों में लिखना जिन्होंने भारत की स्वतंत्रता की वेदी पर अपना जीवन बलिदान किया है।”

22 मार्च 1894 को चटगांव में पैदा हुए महान क्रांतिकारी सूर्य सेन ने इंडियन रिपब्लिकन आर्मी की स्थापना कर चटगांव विद्रोह का सफल नेतृत्व किया। उन्होंने शिक्षक के रूप में सेवाएं दी थीं इसलिए लोग प्यार से उन्हें “मास्टर दा” कहकर सम्बोधित करते थे।

18 अप्रैल 1930 को बंगाल के चटगांव में आजादी के दीवानों ने अंग्रेजों को उखाड़ फेंकने के लिए इंडियन रिपब्लिकन आर्मी (आईआरए) का गठन किया। जिसके बाद पूरे बंगाल में क्रांति की ज्वाला भड़क उठी। 18 अप्रैल 1930 को सूर्य सेन के नेतृत्व में दर्जनों क्रांतिकारियों ने चटगांव के शस्त्रागार को लूटकर अंग्रेजों के शासन के खात्मे की घोषणा कर दी। चटगांव में कुछ दिनों के लिए अंग्रेजी शासन का अन्त हो गया।

इस घटना के बाद देश के अन्य हिस्सों में भी स्वतंत्रता संग्राम उग्र हो उठा। पंजाब में हरिकिशन ने वहां के गवर्नर की हत्या की कोशिश की। दिसंबर 1930 में विनय बोस, बादल गुप्ता और दिनेश गुप्ता ने कलकत्ता की राइटर्स बिल्डिंग में प्रवेश किया और स्वाधीनता सेनानियों पर जुल्म ढहाने वाले पुलिस अधीक्षक को मौत के घाट उतार दिया। सत्ता डगमगाते देख अंग्रेज बर्बरता पर उतर आए। महिलाओं और बच्चों तक को नहीं बख्शा गया। आईआरए के अधिकतर योद्धा गिरफ्तार कर लिए गए। काफी लुका-छिपी के बाद अपने साथी के विश्वासघात के कारण फरवरी 1933 में सूर्यसेन गिरफ्तार कर लिए गए।

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