आपने सुना… पीएम मोदी ने अगला टारगेट किसको किया है..!

Narendra Modi

                                                           – कौशल मूंदड़ा यदि आपने नहीं सुना है तो सुन लीजिये। प्रधानमंदी नरेन्द्र मोदी ने अपना अगला लक्ष्य स्पष्ट घोषित किया है। जिन्हें उन्होंने टारगेट किया है, उन्हें संभल नहीं बल्कि सुधर ही जाना चाहिए ताकि वे अंगड़ाई लेते नये भारत की तीसरी आंख का शिकार न हो जाएं। प्रधानमंत्री मोदी का अगला टारगेट भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारी हैं, जो अब तक किसी न किसी बहाने या ‘रसूख’ के चलते बचते-बचाते रहे, वे अब बख्शे नहीं जाएंगे।

पांच राज्यों में चुनाव के परिणाम में चार राज्यों की जीत का परचम फहराने के बाद देश की राजधानी में भाजपा मुख्यालय में मतदाताओं और कार्यकर्ताओं का आभार प्रदर्शित करने पहुंचे पीएम मोदी ने अपने आगे के मार्ग की दिशा का स्पष्ट रूप से खुलासा किया है। उन्होंने जनता द्वारा दिए गए समर्थन को भाजपा की सद् निष्ठा और सद् नीयत के साथ जमीन से जुड़ी नीतियों का समर्थन बताते हुए कहा कि जनता ने अब जातिवाद को नहीं बल्कि विकासवाद को चुना है, ‘ज्ञानी’ लोग इस बात को समझ लें और देश में चुनावों के दौरान जातिवाद के समीकरणों का घिसा-पीटा राग अलापने के बजाय विकासवाद की चाह वाले नये भारत पर ध्यान दें।

इन सारी बातों के बीच उन्होंने सबसे ज्यादा जोर दिया और विशेष रूप से भ्रष्टाचार मुक्त भारत के लक्ष्य पर कार्यकर्ताओं से सीधा संवाद किया। उन्होंने अपने चिरपरिचित अंदाज में पूछा, भ्रष्टाचार के खिलाफ कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए या नहीं होनी चाहिए, भ्रष्टाचार की दीमक नष्ट होनी चाहिए या नहीं होनी चाहिए। पीएम मोदी ने कहा कि अपनी तिजोरी भरने की प्रवृत्ति देश को नुकसान पहुंचा रही है। साल 2014 में ईमानदार सरकार का वादा करते हुए भाजपा जीती और जब पांच साल बाद देश को लगा कि भाजपा सही राह पर चली है, तब 2019 में और ज्यादा आशीर्वाद दिया। देश का आम मतदाता उनसे अपेक्षा रखता है प्रामाणिकता की, भ्रष्टाचारियों को सजा की, कठोर कार्रवाई की। लेकिन, जब देश की जांच एजेंसियां कार्रवाई करती हैं तो ‘वे’ लोग और उनके ‘ईको सिस्टम’ भ्रष्टाचारियों को बचाने के लिए उन संस्थाओं को ही बदनाम करने के लिए आगे आ जाते हैं। घोटालों से घिरे लोग एकजुट होकर ईको सिस्टम की मदद से इन एजेंसियों पर भी दबाव बनाने लगे हैं। जांच एजेंसियों को रोकने के लिए नए-नए तरीके खोजे जाते हैं, ‘उन’ लोगों को न्यायपालिका पर भी भरोसा नहीं है। हजारों-करोड़ों का भ्रष्टाचार करो, जांच नहीं होने दो, यदि जांच हो तो दबाव बनाओ, और तो और किसी भ्रष्टाचारी पर कार्रवाई होते ही उसे धर्म, प्रदेश, जाति का रंग देने लग जाओ। पीएम मोदी यहीं नहीं रुके, उन्होंने यह भी कहा कि किसी माफिया पर जब अदालत खिलाफ फैसला सुना देती है तो उसे भी ‘वो’ ईको सिस्टम, धर्म और जाति से जोड़ देता है।
पीएम मोदी ने सीधे-सीधे आग्रह किया कि सभी समाज, सभी सम्प्रदाय इस पर विचार करें, ऐसे माफियाओं को अपनी जाति से दूर करने की हिम्मत करें, इससे समाज मजबूत होगा, सम्प्रदाय मजबूत होगा और तब हर व्यक्ति का भला होगा। मोदी ने यूपी में ऐतिहासिक दोबारा जीत के लिए इसे बड़ा फैक्टर बताया कि वहां भ्रष्टाचार की कमर टूटी, तो मतदाताओं ने उसे अपना विश्वास दोबारा दिया।

भले ही मोदी ने ‘बुलडोजर’ शब्द का उपयोग नहीं किया लेकिन उनके कहने के मायने शायद यही थे कि अब भ्रष्टाचार के खिलाफ बुलडोजर सिर्फ यूपी में नहीं, बल्कि पूरे देश में चलेगा। आखिर भ्रष्टाचार से मुक्ति गुड गवर्नेंस का महत्वपूर्ण कारक है। मोदी ने अपने मुख्यमंत्रित्व काल के अनुभव की बदौलत यह भी कहा कि वे समझते हैं कि एक सामान्य आदमी को अपने हक के लिए कितने पापड़ बेलने पड़ते हैं। फिर भी, भ्रष्टाचार जो कि देश के लिए ‘कैंसर’ बन चुका है, उससे निजात के लिए किस तरह की और कितनी थैरेपी की जरूरत पड़ेगी, यह तो वक्त ही बताएगा, लेकिन आम आदमी के जेहन में कुछ सामान्य से सवाल हर वक्त दौड़ते रहते हैं। सवाल है कि एक ही तरह के मामलों में दो तरह के निर्णय क्यों होते हैं, एक ही दिशा में बढ़ती अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई उसी तरह के दूसरे अतिक्रमण पर लागू क्यों नहीं होती, छोटे बकायादारों पर तरह-तरह की कार्रवाई का ‘डर’ और ‘दबाव’ पहुंचता है, जबकि बड़े-बड़े बकायादारों के लिए सरकारें सैटलमेंट की स्कीम्स लेकर आती हैं, ‘सरकार’ तक पहुंचते-पहुंचते निर्णय बदल क्यों जाते हैं… और सबसे बड़ा ‘डर’ यह कि भ्रष्टाचार के खिलाफ आपत्ति करने या ‘अतिरिक्त सेवा शुल्क’ का भुगतान नहीं करने वाले साधारण नागरिक के सामान्य सीधे काम भी अटकने या अटकाये जाने शुरू हो जाते हैं…???

उम्मीद की जानी चाहिए कि एक सामान्य साधारण आदमी भ्रष्टाचार के जिन सवालों से आए दिन जूझता है, देश के शीर्ष नेतृत्व की रीति-नीति उन सवालों का बेहतर जवाब सामान्य नागरिक के समक्ष प्रस्तुत करेगी।

                                        कौशल मूंदड़ा

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं)

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