“संयुक्त राष्ट्र में हिन्दी: संभावनाएँ और चुनौतियाँ” विषयक राष्ट्रीय संगोष्ठी आयोजित

कोलकाता : “कलकत्ता विश्वविद्यालय” और प्रतिष्ठित वित्तीय संस्थान “बैंक ऑफ़ बड़ौदा” द्वारा राजाबाजार साइंस कॉलेज के मेघनाद साहा सभागार में “बड़ौदा मेधावी विद्यार्थी सम्मान योजना” के तहत “संयुक्त राष्ट्र में हिन्दी: संभावनाएँ और चुनौतियाँ” विषय पर एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी आयोजित की गयी।

इस संगोष्ठी में 2021-2023 सत्र में हिन्दी विभाग से स्नातकोत्तर में प्रथम और द्वितीय स्थान प्राप्त करने वाले दो विद्यार्थियों मेघाली बनर्जी और रोहित मेहता को बैंक द्वारा सम्मानित किया गया। मेघली बनर्जी को ₹11000 तथा रोहित मेहता को ₹7500 के गिफ्ट कार्ड के साथ प्रशस्ति-पत्र एवं पुष्प-गुच्छ देकर सम्मानित किया गया।

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विभागाध्यक्ष डॉ. राम प्रवेश रजक और प्रो. राजश्री शुक्ला ने संगोष्ठी में उपस्थित सभी अतिथियों एवं कार्यक्रम के केंद्र मेधावी विद्यार्थियों का अभिवादन किया। दोनों मेधावियों ने अपने मन की बात श्रोताओं के समक्ष रखी। पुरुष वर्ग में प्रथम रोहित मेहता ने अपने माता-पिता,गुरुजनों और मित्रों के प्रति आभार प्रकट करते हुए कहा कि इस सम्मान की अस्मिता सदैव के लिए उनके साथ जुड़ गयी है।

गुरुओं के प्रति आभार व्यक्त करते हुए उन्होंने बताया कि कैसे उन्होंने प्रो. राजश्री मैम से जीवन-मूल्यों को ग्रहण किया, प्रो. राम आह्लाद सर से जीवन में सदैव निरंतरता बरकरार रखने का गुण; विभागाध्यक्ष डॉ. राम प्रवेश रजक से तटस्थता, सबको एक नजरिये से देखने का गुण तथा नेतृत्व कौशल का गुण एवं प्रो. विजय कुमार साव सर से अनुवाद कला सीखा। इस कार्यक्रम को आगे बढ़ाते हुए बैंक ऑफ बड़ौदा द्वारा आयोजित वाद-विवाद प्रतियोगिता के विजयी प्रतिभागियों को भी प्रमाण-पत्र दिया गया।

संगोष्ठी के अध्यक्ष एवं संचालक डॉ. राम प्रवेश रजक ने मेधावी छात्रों को संबोधित करते हुए कहा कि “छात्रों को सम्मानित होते देखने में शिक्षक का भी सम्मान होता है।” संजय कुमार तिवारी (महाप्रबंधक एवं अंचल प्रमुख, बैंक ऑफ बड़ौदा, कोलकाता अंचल) ने ‘भाषा के क्षेत्र में संभावना और चुनौती’ को लेकर कहा कि “भाषा किसी परिस्थिति की मोहताज नहीं होती।” संदीप कुमार (सहायक महाप्रबंधक एवं क्षेत्रीय प्रमुख, बैंक ऑफ बड़ौदा, वृहत्तर कोलकाता क्षेत्र) ने बैंक ऑफ़ बड़ौदा के हिन्दी तथा अन्य भारतीय भाषाओं को प्रोत्साहन देने के लिए किए जाने वाले सक्रिय प्रयासों के बारे में बतलाया।

संदीप कुमार ने अपने जीवन की स्मृतियों को साझा करते हुए इस सम्मान योजना को शुरू करने के पीछे की प्रेरणा के बारे में चर्चा करते हुए महाराज सयाजीराव गायकवाड़ का जिक्र किया जिन्होंने भीमराव अंबेडकर जी को विदेश पढ़ने के लिए भेजा था। प्रसिद्ध कवि, आलोचक एवं सम्मोहक वक्ता प्रो. जितेंद्र श्रीवास्तव ने बंगाल की धरती से विकसित होती हिन्दी की रूपरेखा बताई और कहा, ‘भाषा का विकास तब तक नहीं होगा जब तक उसमें आधुनिकता न हो। ‘उन्होंने हिन्दी को स्वाधीन चेतना की भाषा मानते हुए पूरे विश्व के लिए कल्याणकारी बताया। उन्होंने हिन्दी को राष्ट्रभाषा के रूप में प्रतिष्ठित करने का पुरजोर समर्थन करने वाले सबसे पहले मनीषी ऋषि बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय को नमन करते हुए बताया कि पैसों से हिन्दी कभी वह सम्मान हासिल नहीं कर सकती है, इसे सम्मान तो केवल इसे बोलने, समझने और इसके प्रेमी ही दिला सकते हैं।

गतवर्ष डॉ. राम प्रवेश रजक के निदेशन में परमजीत कुमार पंडित द्वारा सुप्रतिष्ठित कवि प्रो. जितेंद्र श्रीवास्तव की कविताओं पर लिखी गयी एम.फिल. लघु शोध- प्रबंध संपन्न हुई थी जिसे बाद में परमजीत कुमार पंडित ने “जितेंद्र श्रीवास्तव एवं उनकी जीवन दृष्टि” नामक पुस्तक का रूप दिया। इस पुस्तक का विमोचन भी इसी कार्यक्रम में किया गया। प्रो. संजीव दुबे (विभागाध्यक्ष एवं डीन, स्कूल ऑफ लैंग्वेज लिटरेचर एवं कल्चरल स्टडीज, गुजरात केंद्रीय विश्वविद्यालय) ने भाषा के तीन प्रकार मन, ज्ञान और स्वाभिमान पर चर्चा करते हुए कहा कि भारतीय भाषाओं में तुलना करने से प्रेम और साहचर्य नष्ट हो जाता है। उन्होंने संयुक्त राष्ट्र में हिन्दी के प्रोत्साहन के लिए भारत सरकार के प्रयासों पर भी विस्तृत चर्चा की।

संगोष्ठी में वक्तव्य को आगे बढ़ाते हुए अनिंद्य गांगुली (विभागाध्यक्ष, हिंदी विभाग, प्रेसीडेंसी विश्वविद्यालय) ने भाषा की समृद्धि के लिए उसे मुक्त बनाने का सुझाव दिया। भाषा चित्त और वित्त के बीच सेतु की तरह कार्य करते हुए भारतीय मानस के चित्त और उसकी आत्मीयता को दुनिया से परिचित करवा सकती है। प्रो. प्रमोद कुमार (हिन्दी विभाग, विद्यासागर विश्वविद्यालय) ने कहा, हिन्दी आज भी संघर्ष की भाषा है और हिन्दी भाषी अपनी चेतनाशीलता के साथ संघर्षरत है। संगोष्ठी के अंतिम वक्तव्य में विजय कुमार साव ने मेधावी विद्यार्थियों को शुभकामनाएं देते हुए हिंदी के वैश्विक विकास के लिए उसे व्यापार, ज्ञान-विज्ञान, मेडिकल साइंस और कूटनीति आदि विषयों से जोड़ने का सुझाव दिया। कार्यक्रम का कुशल संचालन और धन्यवाद ज्ञापन डॉ. राम प्रवेश रजक ने किया। कार्यक्रम में हिंदी विभाग के शोधार्थी, स्नातकोत्तर उत्तीर्ण विद्यार्थी, तृतीय सत्र के छात्र तथा विभिन्न विश्वविद्यालयों के प्राध्यापकगण, विद्यार्थीगण उपस्थित थे।

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