डिजिटल प्लेटफार्म के जरिए अब दर्शकों से संवाद कर रही है फिल्म ‘संवदिया’

  • डिजिटल प्लेटफार्म एमएक्स प्लेयर पर आने के बाद चर्चा में बनी हुई है सुप्रसिद्ध हिंदी कथाकार फणीश्वरनाथ रेणु की कहानी पर बनी फिल्म ‘संवदिया’
  • साहित्यिक-सांस्कृतिक संस्था ‘नीलांबर’ के बैनर तले, रंग-निर्देशक ऋतेश कुमार के निर्देशन में बनी है 40 मिनट की लघु फिल्म

कोलकाता : लोकभाषा की नींव पर खड़ी कथाकार फणीश्वरनाथ रेणु की कहानी ‘संवदिया’ पहाड़ी झरने की तरह गतिमान है। उसकी गति, लय, प्रवाह, संवाद और संगीत पढ़ने वाले के रोम-रोम में झंकृत होने लगता है। दशकों से पाठक मन में रची-बसी यही कहानी अब रूपहले पर्दे यानी मनोरंजन प्लेटफार्म एमएक्स प्लेयर पर आई है और दर्शकों से भरपूर संवाद कर रही है। डिजिटल प्लेटफार्म पर रिलीज होते ही फिल्म को लेकर सोशल मीडिया पर चर्चाएं व प्रतिक्रियाएं भी आने लगी हैं। सिनेमा-प्रेमी विशेषकर साहित्यिक सिनेमा के दर्शकों में फिल्म को लेकर खासा उत्साह है। विभिन्न सोशल मीडिया प्लेटफार्म के माध्यम से दर्शक बड़े अंतराल बाद बनी इस साहित्यिक फिल्म का स्वागत कर रहे हैं बल्कि इस तरह की और फिल्मों के बनाए जाने पर चर्चाएं भी कर रहे हैं।

फिल्म को सिनेमा, साहित्य, संगीत और रंगमंच क्षेत्र के प्रतिष्ठित कलाकारों से भरपूर सराहना मिल रही है। लघु फिल्म को लेकर प्रसिद्ध अभिनेता यशपाल शर्मा लिखते हैं- ‘संवदिया देखी। बहुत अच्छी फिल्म है। इसके सभी कलाकारों को हार्दिक बधाई।’ वहीं प्रतिष्ठित रंगकर्मी व निर्देशक उमा झुनझुनवाला ने फिल्म की सराहना के साथ भविष्य में इस तरह की और सुंदर फिल्मों के लिए शुभकामनाएं दी हैं।
सुप्रसिद्ध कवि नरेश सक्सेना ने लिखा, ‘फिल्म का व्याकरण, भाषा के व्याकरण की तुलना में एकदम अलग, महंगा और हर वाक्य को साकार करने के लिए एकदम अलग तरह की कल्पनाशीलता की मांग करता है। छोटी संस्था या कम बजट में फिल्म बनाने की कामना निश्चय ही दुस्साहसिक होने के लिए अभिशप्त होती है। हालांकि नीलाम्बर द्वारा प्रस्तुत फ़िल्म के कैमरा मैन, एडिटर, लोकेल और अभिनेताओं ने काफ़ी हद तक एक सफल और सार्थक प्रयत्न किया है। इस दृष्टि से नीलांबर और उनके साथियों की प्रशंसा की जानी चाहिए कि उन्होंने इस महत्वकांक्षी प्रयत्न के जोखिम से डरे बिना उसे एक सीमा तक चाक्षुष स्तर पर, एक अंजाम तक पहुँचाया।’
प्रतिष्ठित कथाकार किरण सिंह लिखती हैं, ‘संवदिया’–कुएँ, तालाब और चिट्ठियों की तरह लुप्त होते उस भाईचारे–बहनापे की फिल्म है जहाँ गाँव – जवार के लोग एक क्षेत्रफल में रहने भर से रिश्ते में बँध जाते थे। यह महानगरीय अजनबीपन और आत्मकेन्द्रित हो रही जिन्दगी के विरुद्ध हमारी संवेदनाओं को निस्वार्थ सामाजिकता की ओर लौटा लाती है। ‘संवदिया’, संवेदना और कला की ऊँचाइयों को छूने वाली फिल्म है। नीलांबर कोलकाता के इस प्रयास को हम सभी मिल कर सफल बनाएँ।’

कथाकार व संगीतकार मृत्युंजय कुमार सिंह ने लिखा, ‘संवदिया और बड़ी बहुरिया की मन: स्थिति औऱ उनकी सोच व भावना को निर्देशक और सिनेमेटोग्राफर ने बहुत ही दक्षता से उकेरा है।’ वरिष्ठ कथाकार अलका सरावगी ने परिपक्व पटकथा लेखन, निर्देशन, अभिनय, संगीत और सिनेमेटोग्राफी को मनमोहक बताया। हिंदी कवि आशुतोष दुबे ने लिखा कि जो सरलता, निश्छलता और परदुखकातरता संवदिया में है, उसे फिल्म मूर्त कर सकी है। अभिनेत्री कल्पना झा ने लिखा, ‘संवदिया कंफर्ट फिल्म की तरह है, अपनी सादगी में दूरदर्शन के जमाने के सिरियलों की याद दिलाती और सहलाती सी। इसका मुख्य आकर्षण इसका ठेठपन है।’ हिंदी के प्रतिष्ठित आलोचक प्रो. शंभुनाथ ने लिखा है कि साहित्यिक कृतियों पर फिल्म बनाने का प्रयास काफी महत्वपूर्ण है। और बेहतर हो सकने की गुंजाइश के बीच फिल्म दर्शकों को बांधने में सफल है।

साहित्यकार पीयूष कुमार ने लिखा- रेणु की आंचलिकता को दृश्य में कायम रखने में निर्देशक सफल रहे हैं और यह बड़ी बात है। सुपरिचित आलोचक गीता दूबे लिखती हैं – फणीश्वरनाथ “रेणु” की मार्मिक कहानी “संवदिया” पर इसी नाम से निर्मित फिल्म देखी। फिल्म निसंदेह अच्छी बनी है, सभी कलाकारों ने बढ़िया काम किया है। निर्देशक और पटकथा लेखक ने कहानी के साथ पूरा न्याय किया है। साहित्यिक कृति को फिल्म के रूप में ढालने के अपने जोखिम होते हैं। नीलांबर को बधाई कि उन्होंने यह जोखिम उठाया और उसमें कमोबेश सफल भी हुए हैं। शोध छात्रा प्रियंका सिंह लिखती हैं – फिल्म देखते हुए पढ़ने की वह स्मृति भंग नहीं हुई बल्कि मजबूत हुई। ‘संवदिया’ को शब्दों से दृश्य में इससे बेहतर नहीं ढाला जा सकता था। संगीत और गीत के साथ बिहार की धरती का एसेंस इस तरह दर्शक तक संप्रेषित होता है कि कहानी में कहानी से ज्यादा गहरे वह इस एसेंस से जुड़ता है।

हिंदी के सुप्रसिद्ध कथाकार फणीश्वरनाथ रेणु की कहानी पर बनी 40 मिनट की इस लघु फिल्म का निर्माण साहित्यिक-सांस्कृतिक संस्था ‘नीलांबर’ ने किया है। रंगकर्मी एवं निर्देशक ऋतेश कुमार के निर्देशन में बनी इस फिल्म में एक बिखरते संभ्रांत परिवार की बड़ी बहू के अभावग्रस्त जीवन और उनके उससे जूझने की विभिन्न मनोदशाओं को केन्द्र में रखा गया है। साथ ही एक गंवई संवदिया की संवेदना को भी इसमें व्यक्त करने की कोशिश की गई है। फिल्म के कई दृश्यों का फिल्मांकन रेणु के पैतृक गाँव सिमराहा एवं उसके आसपास के अंचलों में ही किया गया है। कहानी को यथासंभव उसके समयकाल और परिवेश में चित्रित करने की कोशिश की गई है।

‘संवदिया’ के निर्माण को लेकर नीलांबर के अध्यक्ष व कवि यतीश कुमार ने कहा कि सीमित संसाधन में इस स्तर की फ़िल्म बनाना एक सपना था, साथ ही चुनौती भी जिसे नीलांबर ने पूरा किया। साथ सपने देखने का प्रतिफल है यह फ़िल्म। यहाँ तक पहुँचने के बाद हमें आगे की यात्रा दिखने लगी है।

फिल्म निर्माण की प्रक्रिया, चुनौतियों और सफलता पर नीलांबर के सचिव व फिल्म-निर्देशक ऋतेश कुमार ने कहा कि संवदिया पर मिली प्रतिक्रिया ने मन में मीठा सुख भर दिया है और चौंकाया भी है। यह फ़िल्म अपने निर्माण के समय से ही बातचीत के केंद्र में आ गई। मीडिया ने अपूर्व कवरेज दिया। दर्शकों ने फ़िल्म को खूब सराहा है। इस फ़िल्म ने उनको भीतर तक छुआ है। एक निर्देशक के तौर पर मैं यही चाहूँगा कि मेरी हर फ़िल्म को लोग ऐसा ही प्यार दें।

इस फिल्म के मुख्य कलाकारों में मृणमोई विश्वास, दीपक ठाकुर, विमलेश त्रिपाठी, आशा पांडेय, पूनम सिंह एवं आदित्य प्रियदर्शी शामिल हैं। फिल्मांकन विशाल पांडेय का है। फ़िल्म मैनेजिंग का कार्यभार यतीश कुमार और मनोज झा ने संभाला है।

मालूम हो कि, इससे पहले रेणु की कहानी ‘तीसरी कसम’ पर बासु भट्टाचार्य के निर्देशन में गीतकार शैलेंद्र ने फिल्म का निर्माण किया था। 2017 में उनकी कहानी ‘पंचलाइट’ पर ‘पंचलैट’ फिल्म का निर्माण कोलकाता के निर्देशक प्रेम मोदी ने किया था। इसी कड़ी में नीलांबर द्वारा निर्मित फिल्म ‘संवदिया’ को देखा जा सकता है। ज्ञातव्य हो कि इसके पहले इस संस्था ने वंदना राग की कहानी ‘क्रिसमस करोल’, चंदन पांडेय की कहानी ‘जमीन अपनी तो थी’, मन्नू भंडारी की कहानी ‘अनथाही गहराइयां’ विनोद कुमार शुक्ल की कहानी ‘गोष्ठी’ पर शॉर्ट फिल्में बनाई हैं जो खासी सराही गई हैं।

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