राजनीतिक पार्टियों के लिए कई सबक छिपे हैं चुनाव नतीजों में

                                                  योगेश कुमार गोयल पांच राज्यों (उत्तर प्रदेश, पंजाब, उत्तराखण्ड, गोवा तथा मणिपुर) में हुए विधानसभा चुनावों में जहां भाजपा चार राज्यों में दोबारा सरकार बनाने जा रही है, वहीं पंजाब में अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी का जादू मतदाताओं के सिर चढ़कर बोला। भले ही उत्तराखण्ड और उत्तर प्रदेश में आम आदमी पार्टी का जादू नहीं चला। इन चुनाव नतीजों का आकलन करें तो कांग्रेस, बसपा जैसे विपक्षी दलों को मतदाताओं ने कड़ा संदेश दिया है।

उत्तर प्रदेश में कभी अपने बूते लगातार पांच साल पूर्ण बहुमत की सरकार चलाने वाली बहुजन समाज पार्टी का अस्तित्व प्रदेश की राजनीति से करीब-करीब खत्म हो गया है, वहीं इन चुनावों में सबसे बड़ा खामियाजा अगर किसी को भुगतना पड़ा है तो वो है कांग्रेस पार्टी, जिसके समक्ष अस्तित्व बनाए रखने की बड़ी चुनौती है। यह तय है कि अब पांच विधानसभा चुनावों में भी कांग्रेस की करारी हार के बाद पार्टी के भीतर गांधी परिवार के प्रति विरोध बढ़ेगा और कांग्रेस के अंदर बगावत के सुर पहले के मुकाबले ज्यादा तेज होंगे। इसका स्पष्ट संकेत चुनावी नतीजों पर टिप्पणी करते हुए जी-23 के नेता मनीष तिवारी के उस बयान से भी लगाया जा सकता है, जिसमें उन्होंने कहा है कि यह राहुल गांधी से ही पूछा जाना चाहिए कि कांग्रेस की ऐसी दुर्दशा क्यों हुई? माना जा रहा है कि आने वाले दिनों में कांग्रेस की इस दुर्गति का असर महाराष्ट्र की राजनीति में भी देखने को मिल सकता है।

उत्तर प्रदेश में पिछली बार के मुकाबले भाजपा गठबंधन को भले 50 के करीब सीटों का नुकसान हुआ लेकिन भाजपा की उत्तर प्रदेश सहित चार राज्यों में धमाकेदार जीत ने देश की राजनीति में आने वाले दिनों में कई महत्वपूर्ण बदलावों के संकेत दे दिए हैं। उम्मीदों से परे भाजपा को मिली इस बड़ी चुनावी जीत के बाद देश में तमाम विपक्षी पार्टियों के लिए भाजपा से निबटना अब और भी बड़ी चुनौती होगी। वहीं इस जीत ने पहले से काफी मजबूत माने जाते रहे ‘मोदी ब्रांड’ को और मजबूत कर दिया है। भाजपा के खिलाफ भले चुनाव में तमाम बड़े मुद्दे थे और कुछ जगहों पर सत्ता विरोधी लहर भी दिखाई दे रही थी लेकिन नरेन्द्र मोदी की राजनीतिक सूझबूझ और रणनीति के चलते उनके जादू के समक्ष सब बेअसर साबित हुए।

हालांकि अकेले होने के बावजूद अखिलेश यादव ने जाटों, अल्पसंख्यकों और अति पिछड़ों के बीच अच्छा तालमेल बनाया था और उनकी प्रत्येक चुनावी सभा में भीड़ उमड़ी। लेकिन नतीजों ने स्पष्ट कर दिया कि चुनावों में जुटती भीड़ किसी की जीत की गारंटी नहीं हो सकती। चुनाव परिणामों से स्पष्ट है कि अपनी चुनावी रणनीतियों की बदौलत तमाम मुद्दों के बावजूद भाजपा बड़ी आसानी से रिकॉर्ड बहुमत के साथ दोबारा उत्तर प्रदेश में अपनी सरकार बना रही है।

भाजपा के बारे में यह विख्यात हो चुका है कि वह किसी भी चुनाव को जीतने के लिए अपनी चुनावी रणनीति बहुत पहले बना लेती है। वैसे भाजपा के पास चेहरे के अलावा संसाधन, संगठित कार्यकर्ताओं की मजबूत ताकत और आनुषंगिक संगठनों का सहयोग चुनावों में सोने पे सुहागा साबित हुआ है। चुनाव से ठीक पहले उत्तर प्रदेश में तीन कद्दावर मंत्रियों और करीब दर्जन भर विधायकों का विद्रोह भाजपा के लिए परेशानी का कारण बना लेकिन आलाकमान ने चुनावी वैतरणी पार करने के लिए जिस तरह के समीकरण साधे, उससे विपक्ष के मंसूबों पर आसानी से पानी फिर गया। किसान सम्मान निधि, प्रधानमंत्री आवास योजना, नि:शुल्क गैस कनैक्शन, आयुष्मान भारत योजना के अलावा पिछले दो वर्षों से हर वर्ग के गरीबों को वितरित किए जा रहे नि:शुल्क राशन जैसी योजनाओं ने महंगाई, बेरोजगारी जैसे मुद्दों को पीछे छोड़ दिया।
भाजपा नेता स्वयं यह स्वीकारने से गुरेज नहीं कर रहे कि मुफ्त राशन वितरण योजना पार्टी के लिए गेमचेंजर साबित हुई है। भाजपा में इन चुनावों में उत्तर प्रदेश तथा उत्तराखण्ड जैसे राज्यों में जातियों की राजनीति के तिलिस्म को तोड़ने में भी सफलता हासिल की है और भाजपा की प्रचण्ड जीत ने यह तय कर दिया है कि इन राज्यों में अब जातिगत राजनीति की जगह नहीं है।

उत्तर प्रदेश की राजनीति में तो पूरे 37 वर्षों के बाद भाजपा ऐसी पार्टी के रूप में उभरी, जो पूर्ण बहुमत के साथ लगातार दूसरे कार्यकाल में सत्ता में वापसी कर रही है। भाजपा की इस बड़ी जीत के बाद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का कद न केवल उत्तर प्रदेश की राजनीति में बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर भी पार्टी के भीतर बहुत बड़ा हो गया है। निश्चित रूप से इस रिकॉर्ड जीत के बाद अब उन्हें पार्टी के भीतर मिलने वाली चुनौतियां कुंद पड़ जाएंगी।

चार राज्यों में भाजपा की जीत के बाद भाजपा गठबंधन की अब कुल 18 राज्यों में सरकार हो गई है, जिनमें 12 राज्यों में भाजपा के मुख्यमंत्री हैं और भाजपा का पूरा फोकस 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले होने वाले 11 राज्य विधानसभा चुनावों पर रहेगा, जिनमें गुजरात और हिमाचल प्रदेश में इसी साल चुनाव होने हैं। जबकि शेष राज्यों में 2023 में विधानसभा चुनाव होंगे।

बहरहाल, भाजपा की यह जीत जहां आगामी विधानसभा चुनावों के लिए भाजपा कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ाने में बहुत मददगार साबित होगी, वहीं यह लोकसभा चुनाव के लिए पार्टी की राह भी तैयार करेगी। कुल मिलाकर ये चुनाव परिणाम कांग्रेस के अलावा क्षेत्रीय पार्टियों के लिए भी बड़ा सबक है कि उन्हें अब केवल क्षेत्रीय अस्मिता और जातीय गौरव से अलग हटकर मुद्दों की राजनीति करनी होगी।
                                      (लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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