– संजय तिवारी दुनिया भीषण अकाल के मुहाने पर खड़ी है। विश्व में यह स्थिति भयंकर सूखा और रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण आई है। दुनिया के अत्यंत विकसित देशों में भी हालात बिगड़ रहे हैं। सूखे के कारण यूरोप, अमेरिका और चीन जैसे बड़े क्षेत्रों की हालत खराब है। बहुस्तरीय अर्थव्यवस्था और सामाजिक स्थिति ने भारत को अभी तक बचाया है लेकिन भारत के पड़ोस में पाकिस्तान, अफगानिस्तान, बांग्लादेश और श्रीलंका जैसे देशों में उत्पन्न संकट का सीधा असर भारत पर पड़ना स्वाभाविक है। ऐसे में महंगाई और खाद्यान्न संकट के कारण अनेक देश आंतरिक कलह और अस्थिरता की चपेट में आने वाले हैं। भारत जैसे बड़ी जनसंख्या वाले देश में यह राजनीतिक मुद्दा बना कर खड़ा किए जाने की स्थिति दिख रही है। सबसे बड़ा संकट यह है कि ऐसे हालात में यदि पड़ोसी देशों से भगदड़ की स्थिति आएगी तब क्या होगा, क्योकि अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश के भूखे लोग भारत की ओर ही पलायन करेंगे।
इस बारे में संयुक्त राष्ट्र लगातार चेतावनी दे रहा है। एक हालिया रिपोर्ट में संयुक्त राष्ट्र ने कहा है कि सोमालिया में अकाल दरवाजे पर खड़ा है और इस बात के ठोस संकेत हैं कि इस साल के अंत तक यह दस्तक दे देगा। सोमालिया में सूखे के कारण हजारों लोगों की मौत हो चुकी है। रूस-यूक्रेन युद्ध के प्रभाव के चलते हालात और मुश्किल हो गए हैं। संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार प्रमुख मार्टिन ग्रिफिथ का कहना है कि सोमालिया यात्रा के दौरान उन्होंने भूख के कारण बच्चों को रोते देखा है। सोमालिया में जलवायु परिवर्तन के कारण पैदा हुए सूखे के चलते बीते एक दशक में कम से कम 10 लाख लोग विस्थापित हुए हैं। इथोपिया और केन्या भी इससे व्यापक रूप से प्रभावित हुए हैं। सोमालिया में साल 2011 में भी अकाल पड़ चुका है। माना जाता है कि उस दौरान ढाई लाख लोगों की मौत हुई थी। ऐसा दिख रहा है कि इस बार का अकाल 2011 से भी ज्यादा भयावह होगा।
अफगानिस्तान में हालात बहुत ही खराब हैं। काफी पहले ही संयुक्त राष्ट्र ने आगाह किया था कि बढ़ती गरीबी से जूझ रहे अफगानिस्तान के 60 लाख लोगों पर अकाल से प्रभावित होने का खतरा मंडरा रहा है। मार्टिन ग्रिफिथ्स ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद को बताया है कि मानवीय, आर्थिक, जलवायु, भुखमरी और वित्तीय संकट जैसे कई संकटों का अफगानिस्तान सामना कर रहा है। संयुक्त राष्ट्र ने चेतावनी दी है कि अफगानिस्तान में करीब 60 लाख लोगों को भयंकर अकाल का खतरा है। इसके दो प्रमुख कारण हैं चरम मौसम की स्थिति और तालिबान सरकार की नीतियों की वजह से अनिश्चितता। ग्रिफिथ्स के मुताबिक पिछले साल अगस्त में तालिबान की सत्ता में वापसी के बाद से इस देश में पहले से ही खराब स्थिति और बदतर हो गई है। अत्यधिक बेरोजगारी और अत्यधिक गरीबी के कारण लाखों अफगान एक बार फिर अपनी मातृभूमि छोड़ने के लिए मजबूर हो गए हैं। हाल ही में आए विनाशकारी भूकंप और विभिन्न हिस्सों में अचानक आई बाढ़ ने स्थिति को और खराब कर दिया है।
विश्व में इससे भी बड़ी त्रासदी सूखे ने पैदा कर दी है। लगभग दुनिया इसकी चपेट में है। पश्चिमी अमेरिका में दो झीलें लेक मीड और पावेल सूखे की चपेट में एकदम सिकुड़ गई हैं। बीबीसी की 24 अगस्त की रिपोर्ट के मुताबिक वहां व्यापक क्षेत्र में विगत 500 वर्षों का सबसे बड़ा सूखा पड़ा है। कई प्रसिद्ध नदियां सूख गई हैं। यही हाल चीन का है। चीन के कई प्रांतों में भीषण सूखा पड़ गया है। लोग घरों से बाहर नहीं निकल रहे हैं। अभूतपूर्व लू चल रही है। यूरोप के दो तिहाई भाग के लिए सूखे की चेतावनी जारी हो गई है। अवर्षा और लू के चलते गर्मी की खेती हो ही नहीं सकी जिसमें मक्का, सोयाबीन और सूरजमुखी प्रमुख है। नवंबर तक ऐसे ही मौसम की भविष्यवाणी है। फ्रांस की लोईरे नदी सूख रही है। स्पेन में भी बुरी हालत है। वहां के जलाशय इतने सूख गए हैं कि 5000 वर्ष के पहले की चट्टानें पहली बार दिखाई दे गई हैं। सर्बिया में दूसरे विश्वयुद्ध के समय दानुबे नदी में जर्मनी के दर्जनों डूबे युद्धपोत पहली बार दिखे हैं। चैक शहर जो जर्मनी की सीमा के पास है कि नदी का पानी इतना नीचे जा चुका है कि कुछ चट्टानों पर रोमन अम्पायर के वक्त का यह लिखा मिला है कि ‘यदि मैं दिख गई तो आंसू बहाओ’ मतलब यह वह काललेख है जो आसन्न अकाल की चेतावनी दे रहा है। टेक्सास के डाइनासोर वैली स्टेट पार्क स्थित पलूक्सी नदी का पानी इतना घट चुका है कि 11.3 करोड़ वर्ष की एक डाइनासोर पट्टी दिख गई है जहां उनके पदचिह्न साफ दिख रहे हैं।
चीन की सबसे लंबी यांगजे नदी खस्ताहाल है। इससे 45 करोड़ लोगों का जीवनयापन जुड़ा है और चीन की एक तिहाई फसल इस पर निर्भर है। यहां की पोयांग झील सूख रही है। यांगजे से जुड़ी नहरों में भी पानी रोक दिया गया है। अफ्रीका के केन्या, सोमालिया और इथोपिया में भीषण सूखा है। यहां भयावह सूखे से 22 लाख लोगों का जीवन संकटग्रस्त हो चुका है। आखिर इससे क्या पूर्वाभास हो रहा है, यह चिंता का विषय होना चाहिए। विश्व में अनाज की कमी की भीषण विभीषिका उत्पन्न होने वाली है। दुर्भिक्ष और अकाल पड़ेगा। सावधान हो कर तैयार रहने का समय है।
जर्मनी की विदेश मंत्री अन्नलेना बेरबॉक ने कहा है कि वैश्विक स्तर पर खाद्य पदार्थों के बढ़ते मूल्यों के लिए यूक्रेन में चल रहे रूस का सैन्य अभियान उत्तरदायी है। यूक्रेन के विरुद्ध युद्ध को रूस द्वारा षडयंत्रपूर्वक “अनाज युद्ध” में बदल दिया गया है । इसका परिणाम कई देशों पर, विशेषकर अफ्रीकी देशों पर हो रहा है। बेरबॉक ने भीषण वैश्विक अकाल की संभावना की चेतावनी दी है। हालांकि, रूस ने इस वक्तव्य का तुरंत खंडन करते हुए कहा कि अकाल के पीछे पाश्चात्य देशों द्वारा रूस पर लगाए गये निर्बंध उत्तरदायी हैं। दूसरी ओर पिछले सप्ताह संयुक्त राज्य अमेरिका ने कहा कि यूक्रेन से विश्वभर में प्रति माह 50 लाख टन अनाज निर्यात किया जाता था, लेकिन रूस द्वारा सभी यूक्रेनी बंदरगाहों को बंद करने से सब जगह अन्न का संकट है। इससे कई देश भूख से पीड़ित हो सकते हैं।
(लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)