वसन्त पंचमी : इसी दिन अवतरित हुई थी विद्या और बुद्धि की देवी सरस्वती

                                             – योगेश कुमार गोयल देशभर में माघ माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी, वसन्त पंचमी के रूप में धूमधाम से मनाई जाती है। दरअसल माना जाता है कि यह दिन वसन्त ऋतु के आगमन का सूचक है और इसी दिन से वसन्त ऋतु का आगमन होता है। मान्यता है कि इस दिन शरद ऋतु की विदाई होती है और वसन्त ऋतु के आगमन के साथ समस्त प्राणी जगत में नवजीवन एवं नवचेतना का संचार होता है। वातावरण में चहुंओर मादकता का संचार होने लगता है तथा प्रकृति के सौन्दर्य में निखार आने लगता है। शरद ऋतु में वृक्षों के पुराने पत्ते सूखकर झड़ जाते हैं लेकिन वसन्त की शुरुआत के साथ ही पेड़-पौधों पर नई कोंपले फूटने लगती हैं। आमों में बौर आ जाते हैं। चारों ओर रंग-बिरंगे फूल खिल जाते हैं और फूलों की सुगंध से चहुंओर धरती का वातावरण महकने लगता है। खेतों में गेहूं की सुनहरी बालें, स्वर्ण जैसे दमकते सरसों के पीले फूलों से भरे खेत, पेड़ों की डालियों पर फुदकती कोयल की कुहू-कुहू, फूलों पर भौंरों का गुंजन और रंग-बिरंगी तितलियों की भाग-दौड़, वृक्षों की हरियाली वातावरण में मादकता का ऐसा संचार करते हैं कि उदास से उदास मन भी प्रफुल्लित हो उठता है। वसन्त पंचमी के ही दिन होली का उत्सव भी आरंभ हो जाता है और इस दिन पहली बार गुलाल उड़ाया जाता है।

वसन्त पंचमी का महत्व कुछ अन्य कारणों से भी है। साहित्य और संगीत प्रेमियों के लिए तो वसन्त पंचमी का विशेष महत्व है क्योंकि यह ज्ञान और वाणी की देवी सरस्वती की पूजा का पवित्र पर्व माना गया है। बच्चों को इसी दिन से बोलना या लिखना, सिखाना शुभ माना गया है। संगीतकार इस दिन अपने वाद्य यंत्रों की पूजा करते हैं। ऐसी मान्यता है कि इसी दिन विद्या और बुद्धि की देवी माँ सरस्वती अपने हाथों में वीणा, पुस्तक व माला लिए अवतरित हुई थीं। यही कारण है कि भारतीय संस्कृति में इस दिन लोग विद्या, बुद्धि और वाणी की अधिष्ठात्री देवी सरस्वती की पूजा-आराधना करके अपने जीवन से अज्ञानता के अंधकार को दूर करने की कामना करते हैं। कहा जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण ने वसन्त पंचमी के दिन ही प्रथम बार देवी सरस्वती की आराधना की थी और कहा था कि अब से प्रतिवर्ष वसन्त पंचमी के दिन देवी सरस्वती की पूजा होगी तथा इस दिन को माँ सरस्वती के आराधना पर्व के रूप में मनाया जाएगा।

प्राचीन काल में वसन्त पंचमी को प्रेम के प्रतीक पर्व के रूप में ‘वसंतोत्सव’, ‘मदनोत्सव’, ‘कामोत्सव’ अथवा ‘कामदेव पर्व’ के रूप में मनाए जाने का भी उल्लेख मिलता है। उस जमाने में स्त्रियां इस दिन अपने पति की कामदेव के रूप में पूजा करती थी। इस संबंध में मान्यता है कि इसी दिन कामदेव और रति ने पहली बार मानव हृदय में प्रेम की भावना का संचार कर उन्हें चेतना प्रदान की थी ताकि वे सौन्दर्य और प्रेम की भावनाओं को गहराई से समझ सकें। इस दिन रति पूजा का भी विशेष महत्व है। मान्यता है कि कामदेव ने वसन्त ऋतु में ही पुष्प वाण चलाकर समाधिस्थ भगवान शिव का तप भंग करने का अपराध किया था, जिससे क्रोधित होकर उन्होंने अपने तीसरे नेत्र की ज्वाला से कामदेव को भस्म कर दिया था। बाद में कामदेव की पत्नी रति की प्रार्थना और विलाप से द्रवित होकर भगवान शिव ने रति को आशीर्वाद दिया कि उसे श्रीकृष्ण के पुत्र प्रद्युम्न के रूप में अपना पति पुनः प्राप्त होगा।

कहा जाता है कि वसन्त पंचमी के दिन का स्वास्थ्य वर्षभर के स्वास्थ्य को प्रभावित करता है। अतः इस पर्व को स्वास्थ्यवर्द्धक एवं पापनाशक भी माना गया है। वसन्त पंचमी को गंगा का अवतरण दिवस भी माना जाता है। वसन्त पंचमी को ‘श्री पंचमी’ भी कहा गया है। माना जाता है कि इसी दिन गंगा मैया प्रजापति ब्रह्मा के कमंडल से निकलकर भागीरथ के पुरखों को मोक्ष प्रदान करने हेतु और समूची धरती को शस्य श्यामला बनाने के लिए पृथ्वी पर अवतरित हुई थी। इसलिए धार्मिक दृष्टि से वसन्त पंचमी के दिन गंगा स्नान करने का बहुत महत्व माना गया है।
                                  – (लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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