सायरस मिस्त्री के जीवन से क्या सीखें

 

आर. के. सिन्हा

– आर.के. सिन्हा

टाटा संस के पूर्व चेयरमैन सायरस मिस्त्री की सड़क हादसे में अकाल मृत्यु से दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री साहिब सिंह वर्मा, मशहूर कलाकार जसपाल भट्टी और कांग्रेस के नेता राजेश पायलट और मोदी सरकार के वरिष्ठ कैबिनेट मंत्री गोपीनाथ मुंडे के सड़क हादसों का याद आना स्वाभाविक है। यह सब सड़क हादसों के ही शिकार हुए। अभी तो इन्हें देश को बहुत कुछ देना था। सायरस मिस्त्री की मौत से भारत का आमजन और कॉरपोरेट संसार हिल सा गया है। मिस्त्री चमक-धमक से दूर रहने वाले एक सज्जन, प्रतिभाशाली और गर्मजोशी से भरे मनुष्य थे। मिस्त्री अपनी पीढ़ी की श्रेष्ठ व्यावसायिक प्रतिभाओं में से एक और बेहद सज्जन किस्म के व्यक्ति थे। उनका वैश्विक दिग्गज कंपनी शापुरजी-पालनजी पालोंजी को खड़ा करने में अहम योगदान था। सायरस मिस्त्री में नेतृत्व के पर्याप्त गुण थे। उन्हीं की सरपरस्ती में शापुरजी-पालनजी मिस्त्री ग्रुप इंफ्रास्ट्रक्टर क्षेत्र के अनेक बड़े प्रोजेक्ट देश और देश से बाहर पूरे कर रहा था। राजधानी में प्रगति मैदान को भी उन्हीं की कंपनी फिर से नये ढंग से तैयार कर रही है। उन्होंने लंदन से सिविल इंजीनियरिंग की डिग्री भी ली थी। इसका उन्हें अपने बिजनेस को गति देने में भरपूर लाभ भी मिल रहा था।

हो सकता है कि यह जानकारी सबको न हो कि सायरस मिस्त्री के दादा ही मशहूर फिल्म ‘मुगले आजम’ जैसी बड़ी पिक्चर के निर्माता थे। उन्होंने उसके निर्माण में भरपूर निवेश किया था। ये बात अलग है कि न तो सायरस मिस्त्री ने और न ही उनके पिता पालानजी मिस्त्री ने फिल्म निर्माण में कोई दिलचस्पी दिखाई । अरबों रुपये की चल-अचल संपत्ति होने पर भी सायरस मिस्त्री का लाइफ स्टाइल काफी सादगी से भरा हुआ था। वे अपने घरों के निर्माण में अरबों रुपये खर्च नहीं करते थे। वे काम भर ही से काम मतलब रखते थे। वे एक बाकी उद्योगपतियों की तरह उद्योगपतियों के संगठन सीआईआई या फिक्की से भी सक्रिय रूप से नहीं जुड़े थे। उनका किसी सियासी दल से भी कोई सीधा संबंध नहीं। कह सकते हैं कि वे एक गैरराजनीतिक इंसान थे। उनका सारा फोकस अपने बिजनेस पर ही रहता था। अभी पिछली 3 जून को ही तो उनके वयोवृद्ध पिता का निधन हुआ था।
सायरस मिस्त्री को भारत ने तब जाना था जब उन्हें रतन टाटा के बाद टाटा ग्रुप की चेयरमैनशिप मिली थी। वे टाटा ग्रुप के मुख्यालय बॉम्बे हाउस में बैठने लगे थे। यह साल 2012 की बात है। लेकिन, वे टाटा ग्रुप के चेयरमैन इसलिए बने थे क्योंकि उनके परिवार के स्वामित्व वाले ग्रुप शापुरजी-पालनजी की टाटा संस में टाटा परिवार के बाद सर्वाधिक शेयरहोल्डिंग है। उन्हें टाटा ग्रुप का पहले चेयरमैन बनवाने और फिर उस पद से हटवाने में रतन टाटा की ही भूमिका रही थी। उनके बाद एन. चंद्रशेखरन टाटा ग्रुप के चेयरमैन बने। वे टाटा ग्रुप के पहले गैर-पारसी चेयरमैन हैं। कुछ उसी तरह से जैसे मिस्त्री पहले गैर टाटा थे, टाटा ग्रुप के चेयरमैन।

सायरस मिस्त्री के टाटा संस के बोर्ड में 2006 में शामिल होने के बाद से ही रतन टाटा के साथ विवाद शुरू हो गया था। कहा जाता है कि विवाद के मूल में कारण यह था कि सायरस मिस्त्री चाहते थे कि टाटा ग्रुप अपने लाभ का जो हिस्सा परोपकारी कार्यों में लगाता है, उस पर लगाम लगाए। रतन टाटा इस राय को नहीं मानते थे। उनका मानना था कि टाटा ग्रुप अपने मूल लक्ष्यों से दूर नहीं जा सकता। वह राष्ट्र निर्माण में अपनी अहम भूमिका निभाता रहेगा। इसमें कोई शक नहीं कि टाटा ग्रुप ने भारत में विज्ञान और शिक्षा के क्षेत्र में अभूतपूर्व योगदान दिया है। सायरस मिस्त्री और रतन टाटा के रास्ते थोड़े से अलग-अलग थे। यहां पर वे हवा के रुख को समझ नहीं सके। बहरहाल, सायरस मिस्त्री को यह चिंता थी कि टाटा ग्रुप की टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज ( टीसीएस) और टाटा स्टील को छोड़कर चूंकि अधिकतर कंपनियां घाटे में हैं या पर्याप्त लाभ नहीं कमा रही हैं, अतः उन्हें गति दी जाए। यह सच भी है कि टाटा ग्रुप की ताकत तो टीसीएस ही है। टाटा ग्रुप के कुल मुनाफे का बड़ा हिस्सा टीसीएस ही कमाती है। कहा तो यह भी जाता है कि सायरस मिस्त्री नैनो कार के प्रोजेक्ट में बड़े निवेश से भी नाखुश थे। वे मानते थे कि नैनो को टाटा ग्रुप ने बहुत देर से लांच किया। इससे टाटा ग्रुप को कोई खास लाभ नहीं हुआ। उनका नैनो प्रोजेक्ट पर सवाल खड़े करना रतन टाटा पर सीधे हमले करने के बराबर था। आखिर नैनो रतन टाटा के दिल करीब का प्रोजेक्ट था। वे इससे भावनात्मक रूप से जुड़े हुए थे।

इस बीच सारयस मिस्त्री के हादसे का शिकार होने के बाद ये सवाल फिर से अहम हो गया है कि हमारे देश की सड़कें और हाइवे कब जाकर पूर्णत: सुरक्षित होंगे। हर साल देश में लगभग डेढ़ लाख से ज्यादा लोग सड़क हादसों के शिकार हो जाते हैं। सड़कों पर अराजकता को तो खत्म करना ही होगा। इसके अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं बचा है। सड़क हादसों के शिकार होने वालों में 50 फीसद 14 से 35 साल की उम्र के लोग ही होते हैं। इनमें से बहुत सारे अपने परिवार के एकमात्र कमाने वाले सदस्य होते हैं। वैसे तो सड़क हादसों के तमाम कारण गिनाए जाते हैं। पर तेज रफ्तार से वाहन चलाना सबसे बड़ा कारण है। अभी साफ नहीं है कि जिस मर्सडीज कार में सायरस मिस्त्री सवार थे, वह कितनी स्पीड से चल रही थी। रफ्तार पर नियत्रंण तो करना होगा। तेज वाहन चलाने वालों पर कठोर दंड लगाया जाना चाहिए। समझ नहीं आता कि कार और दूसरे वाहन चालक अनाप- शनाप गति से अपने वाहनों को क्यों दौड़ाते हैं। ये लेन ड्राइविंग में यकीन नहीं करते। ये हमेशा ओवरटेक करने की फिराक में रहते हैं। सड़क हादसों में न जाने कितने लोग जीवन भर के लिए विकलांग हो जाते हैं, इसका तो कहीं से कभी कोई आंकड़ा मिल ही नहीं सकता।

सायरस मिस्त्री के निधन से दो बातें सीखी जा सकती हैं। पहली, कैसे कोई कारोबारी मीडिया की सुर्खियों से दूर रहकर काम करे। दूसरा, देश को अपनी सड़कों को सुरक्षित बनाने के ठोस उपाय करने होंगे। मुझे ऐसा लगता है कि साइरस की कार उनकी महिला मित्र की जगह कोई पेशेवर ड्राइवर चला रहा होता तो बेहतर रहता। चलो, अब तो जो होना था सो हो गया। लेकिन, मैं समझता हूं कि देश के ऊर्जावान परिवहन मंत्री नितिन गडकरी दुर्घटनाओं के नियंत्रण के लिए अवश्य ही कोई ठोस और सख्त कदम उठाएंगे I

(लेखक, वरिष्ठ संपादक, स्तंभकार और पूर्व सांसद हैं।)

 

 

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